अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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स्वर्ण स्तंभ


अमरकांत

अनिल पु. कवीन्द्र: वर्तमान कथा साहित्य जीवित दस्तावेज़ों की नाटकीय प्रस्तुति या रूपांतरण का लेखन है जबकि मौलिक सृजन की गुंजाइश की संभावना से इंकार की बात कही जा रही है. आप क्या सोचते हैं?

अमरकांत: नहीं ऐसा नहीं है. आज का रचनाकार जो लिखता है वह आज का यथार्थ है. नये रचनाकार नये प्रयोग कर रहे हैं. नई तकनीक विकसित हो रही है इसीलिये नये रचनाकारों के समक्ष तमाम तरह की परेशानियाँ भी आई हैं. सृजनशीलता की ......
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