इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
बचपन से जवानी तक
और जवानी से अब तक
आते-आते
छाती में उगे कई बार
वो इंद्रधनुष-
वीर बहूटियों के ......
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औजार
सड़क
सेल
शोभा यात्रा
चीख
योगफल ......
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क्या दिखा था तुम्हें
पत्थरों से उलझ कर
हुआ हृदय छलनी सरिता का
जल पूरित आँचल में ही
घुल गया कहीं अश्रु-जल उसका
......
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दिल का आलम किस तरह हो गया तेरे बगैर
क्या बताऊँ कितना तन्हा हो गया तेरे बगैर
ज़िन्दगी मजबूर कितनी हो गयी है आजकल
अक्सर घबराता है ये दिल आज भी तेरे बगैर
......
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यह बरसता पानी
उस दिन की याद दिलाता है
जब मैंने तुमको
अपने सम्मुख होने पर
अपने से दूर
बहुत दूर ......
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