इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
खबर है
कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध
बिल्कुल अकेला लड़ रहा एक युद्ध
कुराहा गाँव का खब्ती सम्मेदीन
बदमाशों का दुश्मन ......
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मेढक तुमको शत-शत प्रणाम
हे ज्योतिषी तुम्हारी वाणी निष्फल कभी न जाती है
पावस ऋतु के शुभागमन का आगम हमें बताती है
सत्कवियों के महाकाव्य के क्या तुम रहे उपेक्षित पात्र
नहीं, नहीं तुलसी की प्रतिमा बना गई तुमको शुभ छात्र
ऐसे गुण-सम्पन्न मेक को क्या दे दूँ हे राम ......
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एक आदमी
अपने अंशों के योग से
बड़ा होता है
ठहरिए!
इसे मुझको ......
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औरों की ओर
उद्ग्रीव रहना
जीवन की परिणति नहीं.
तुम्हें भी
घसीट दिया जाएगा
सड़क के किनारे ......
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