इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
साहित्यकार के कृतित्व को उसके जीवनानुभवों से पृथक करके नहीं आँका जा सकता. नि:संदेह साहित्यकार परिस्थिति एवं परिवेश की उपज होता है. 8 अगस्त 1915 में जन्में नाटक, निबन्ध, कहानी, उपन्यास, अभिनय, अनुवाद जैसी महत्त्वपूर्ण विधाओं में पारंगत भीष्म साहनी बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न ऐसे ही साहित्यकार थे, जिन्होंने आंखों देखे समाज को अपने साहित्य में बारीकी से उकेरा है. उनके समय में भारतीय समाज, हिन्दू-मुस्लिम दंगों, धर्म-आडम्बरों, जात-पाँत के भेदों, सांस्कृतिक विभिन्नताओं, पूंजीपति-निर्धन जैसी सामाजिक विद्रूपताओं से युक्त था ......
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हिन्दी में सर्वप्रथम छायावाद युग के कवियों ने ही 'लम्बी कविता' को एक काव्य-माध्यम के रूप में अपनाया. छायावाद के तीन बड़े कवियों ने इस दिशा में प्रयास आरम्भ किए. सबसे पहले सुमित्रानन्दन पन्त ने 1923 में 'परिवर्तन' नामक कविता लिखी. यह कविता अपनी संरचना में लम्बी तो है किन्तु आख्यान की दृष्टि से इसका विशेष महत्व नहीं है. क्योंकि इसकी विषयवस्तु किसी कथा, वृत्तान्त, घटना अथवा घटनाओं की शृंखला को केन्द्र में रखकर नहीं चलती है. असल में यह ......
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