इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
अनिल पु. कवीन्द्र: कला की संस्कृति और रंगों की राजनीति आज के परिप्रेक्ष्य में कितनी सटीक परिभाषा है?
वाज़दा ख़ान: जो कलाकार होता है वो रंगों के साथ जीता है उसके साथ रम जाता है कई मैं यह नहीं कहती कि वो रंगों के साथ राजनीति करता है, हाँ राजनीतिक पार्टियाँ भले ही करती हों वो उनकी दुनिया उनकी अपनी स्वतंत्रता अपना विचार है. कलाकार को तो अपने सारे रंग प्यारे होते हैं. मुझे तो लगता है रंग ......
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