इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
मैंने सदा ये गवारा किया
कि जो मैंने किया क्यूँ किया क्यूँ करता आ रहा
मगर मुश्किल था बूझना खुद के क़रतब
उतने ही खुशगवार
जितना कि यह
"मैं कौन हूँ"
इस घोर नाउम्मीदी के लम्हातों में
ऐसे कई पल बीते जब
यारी और वफ़ा से लफ़्ज़
मेरे ज़हन से शिफ़र नवाज़ हुए
तसव्वुर में आए और
इन लफ़्ज़ों के वज़ूद ने मुझे झकझोरा
लेकिन इस गहरी उदासी में निराशा भरे क्षण मुझे
औ ' ख़यालों को मज़बूर किए गोया
वक़्त मरहम बने
मगर इलाज़ नहीं
वक़्त बेइंतहाँ दर्द के बेमुरव्वत खालीपन को कर सकता है कम.
और सारी चीज़ें वक़्त भर रह गयी हैं सिमटकर
ख़्याल, खुदबख्शी, वतन,
और साज़ ओ सामाँ
बहुत कुछ
ये ज़िंदगी रवाँ दवाँ रगों से भरी रही है
भरोसा सज़दा और प्यार
इनसे भरी हुई,
मगर अब ये बेमानी हो गई है
कसक धीरे धीरे कम से कमतर होती चली
इस एहसास ने दर्द के दुहरेपन को गहरे कहीं भीतर ही छुपाए हुए
घुप्प अँधेरी परछाइयों से भरी रात के भीतर से मैं
जूझता हुआ बाहर आता हूँ
गर्म मांस की गंध के साथ
नए बीजाँकुर औ ' कोंपल है वहाँ
एक नयी अनुभूति के साथ
ऐसा पहले भी हुआ है
मेरे अजीज़, मेरी ख़ुदाई गोया
मेरी ज़िंदगी के मायने हुआ करते थे
उनकी दहलीज़ पर
हसीन लम्हों की सौग़ात दम तोड़ती यारी औ'
ज़िंदगी एक ख़ौफज़दा मौत की तरह.
तब अज़नबी थी मौत
अब ये ख़ुदकुशी उस अज़नबीयत जैसी नहीं जोकि
एक ऐसी जगह से आती थी
जिससे बिलकुल अनजान हूँ
एक पशोपेश जिसकी
धुरी के बीच लगाते हुए चक्कर
और दोराहे पर खड़ा मैं
क्षोभ और ग्लानि से नहीं भरा
मगर
सताता हुआ एक अनचाहा डर
यह वाकई में? मेरे नामचीन होने का ख़ामियाज़ा था
मगर यह खयाल सिवाए और कुछ नहीं
बेहूदगी से भरा था
बावज़ूद इसके मैंने यह ख़याल आने दिया कि फ़ितरतन
मैं बेहद 'मासूम' हूँ
उम्र से अधिक संज़ीदा, हाँ मेरी उम्र से कहीं अधिक
मेरे मित्रों ने दी यह पहचान-' माओ '
हाँ उन सभी को भली भाँति जानता हूँ मैं
ये अल्फ़ाज़ जो मुझे मेरी नयी शख़्सियत की तरह मिला
भरोसा करो,
मैं हमेशा से असहज महसूस करता हूँ
जब कोई चिल्लाता है
' माओ '
यह उसकी डरावनी पिशाच छाया नहीं
न ही मैं वो हो सका.
मैं खुद से मज़े में जिया और
अगर ये यकीन के क़ाबिल नहीं
तो मैं नाखुश भी नहीं,
यही
हाँ, हाँ
ठीक यही
बदलाव है
जो मेरे भीतर पल रहा है.
© 2009 Abhimanyu; Licensee Argalaa Magazine.
This is an Open Access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original work is properly cited.
नाम: अभिमन्यु
उम्र: 39 वर्ष
जन्म स्थान: मधेपुरा (बिहार)
शिक्षा: स्नातक ऑनर्स (राजनीतिशास्त्र), एम. एल. टी., सहरसा कॉलेज, सहरसा; पुश्तो भाषा में सी. ओ. पी. कोर्स, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली.
अनुभव: कदम फ़िल्म्स के साथ लघु फ़िल्म व डॉक्यूमेंटरी के लिए सह-निर्देशक एवम स्क्रिप्ट राईटिंग, 2008; फ़्रेंच मीडिया एण्ड न्यूज़ प्रोडक्सन फर्म 'ला फ़ुल पावर' के लिए अनुवाद और स्क्रिप्ट लेखन, 2007-08; युनाइटेड नेशन मिलेनियम डेवेलपमेंट प्रोग्राम (यू. एन. डी. पी.) में-'पैक्स' (पूअरेस्ट एरिया सिविल सोसाइटी) के लिए कार्यक्रम सह-संयोजक व डेवेलपमेंट अल्टरनेटिव्स के लिए कार्य; अब तक तमाम सामाजिक संस्थाओं से जुड़े रहकर समय समय पर सामजिक गतिविधियों में संलग्न.
संप्रति: अरगला त्रैमासिक पत्रिका के लिए साहित्यिक सहयोग. इसके अतिरिक्त अनुवाद व डाक्यूमेंट्री फ़िल्मों के लिए स्क्रिप्ट लेखन एवं मीडिया संस्थानों के लिए न्यूज़ स्टोरी लेखन. सामाजिक जन आंदोलनों से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय भागेदारी.
संपर्क: ग्राम, पोस्ट - सुखासन चकला, जिला मधेपुरा, बिहार.