अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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युवा प्रतिभा

आकांक्षा गोयल

सर्द पत्ता

हम करें शिकवा ग़ैरों से क्या
यह बेगाने हुए अपनों की कहानी है
पाँव तले जो फूल दब गया
उसके टूटे हुए पत्तों की कहानी है.

यह कहानी है उस धूप की जो निकलती है रौशनी के लिये, सर्दियों में गर्माहट देने के लिये, एक अदद प्यार के लिये, उसकी खूबसूरती के लिये. यह कहानी है सर्द पत्तों की, जिनकी आवाज़ कभी संगीत लगती है, तो कभी दिल की धड़कन जैसी और कभी दर्द भरी आहें. यह कहानी है उस ज़िंदगी की जिसका मक़्सद वह ख़ुद नहीं जनती. बस जानती है तो जीना.

हिना, हाँ हिना ही तो थी वह, जिसने अपनी खुशबू से हमेशा दूसरों की हथेलियों पर रंग भरे. सोचने वाली बात यह है हथेली पर या उसकी लकीरों पर जिसने इस आँवा को हमेशा महकाया. उस आँगन में हर तरह की आवाज़ें थीं खुशी और दर्द भरी, किसी कोने में प्यार और मोहब्बत भरी. मगर नफ़रत कहीं नहीं. यह शायद उसी परवरिश और संस्कार का असर था जिससे हिना ने आफ़ताब को भी रौशन कर दिया और चाँदनी की रंगत को भी फ़ीका कर दिया. उसकी मासूमियत ने पहाड़ पिघलाये उसकी कोमलता से चाँदनी रात भी शरमाए. यह थी हमारी हिना.

हिना की अम्मीजान शमरीन और अब्बूजान इश्फ़ाक मियाँ सीधे सादे लोग थे जो ' जियो और जीने दो ' में यकीन रखते थे. जब हिना आने वाली थी तो उसके घर में खुशियाँ ही खुशियाँ भरी पड़ी थी. एक माँ के दिल में कैसे कैसे ख़याल आते हैं जब उसे एहसास होता है कि एक ज़िंदगी उससे कैसे जुड़ गयी है. वह किसी जीवन को शुरूआत देने वाली है. उनकी यह पहली संतान है. पर साथ ही साथ घर में गम का माहौल भी छाया था. इश्फ़ाक मियाँ की अम्मी रुख़सार बेग़म अब बस कुछ ही समय की मेहमान थीं. बस उन्हें तो अब अपने पोते की इच्छा बाकी रह गयी थी. हिना के होने के चंद महीनों बाद ही वह चल बसीं.
उसकी छोटी-छोटी उँगलियाँ उसकी गोल-गोल आँखें और उसकी मुस्कुराहट यही अब उसके माता-पिता के जीने का मक़्सद था. वक्त बीतता गया. हिना अब बड़ी हो रही थी. उसका बचपन एक शीशा था. सच में एक ऐसा आईना जिसमें कोई भी ख़ुद की साफ़-सुथरी परछायी देख ले. हिना के चेहरे पर एक मुस्कुराहट हर वक्त बनी रही. जब वह चार साल की थी एक हादसे में उसके माँ-बाप की मौत हो गई. बेचारी मासूम बच्चे ने अभी कुछ पाया ही नहीं था कि खोना शुरू कर दिया. उसे एक अनाथालय में भेज दिया गया पर हिना खुश थी. उसका मासूम हृदय यह तो जानता कि उसके माँ-बाप उसके पास नहीं हैं. पर क्यों, कैसे, वह आएँगे तो कब? यह उसकी समझ के बाहर था. उसका मन तो बस उन तितलियों में था जो हर तरफ़ रंग बिखेरती हैं उन फूलों में था जो टूटे दिल को भी अपने रंगों की तरफ़ खींच लेती है. उस अनाथालय की कार्यकर्ता वहाँ की संचालिका मदर रोज़ी को सारे बच्चों में सबसे ज़्यादा प्यार और लगाव उसी से था. बाकी बच्चे आम बच्चों की तरह रोते खेलते कभी पढ़ते तो कभी तंग करते, पर हिना मासूम सी एक कोने में बैठी सबको देखती रहती और मुस्कुराती रहती. एक दिन हिना ने मदर से तोतली आवाज़ में पूछा

- "मदर हम कहाँ से आते हैं?"

- "भगवान के घर से. " मदर हँसते हुए बोली.

- "भगवान कहाँ रहते हैं?"

मदर ने उसे बताया कि भगवान बहुत दूर रहते हैं और भगवान वहाँ से सबको खुशियाँ देते हैं. मदर को भ्रम था कि वो सब उनकी बातें समझ पाती है कि नहीं पर वह सब सुनती सब समझती है और समझने के बाद अगला सवाल. इसी तरह प्यारी प्यारी बातों में उसका वक्त बीतता और ज़िंदगी आगे बढ़ती रही. हिना में अब बड़प्पन आ रहा था. सिस्टर रोज़ी की उम्र बहुत ज़्यादा हो गई थी और अब वह हिना का नहीं, हिना उनका ख़याल रखती थी. हिना का सिस्टर से क्या नाता था यह तो नहीं पता लेकिन उन्हें एक दूसरे के साथ बहुत अच्छा लगता है मानो ज़िन्दगी मिल गई थी. हिना मज़हब में विश्वास नहीं रखती थी मंदिर भी जाती थी और गुरूद्वारा भी. हिना के जीवन में दो ही मक़्सद थे एक सिस्टर रोज़ी का साथ और दूसरा सबको खुशियाँ देना. किसी को दुख हो यह उससे देखा नहीं जाता था. सिस्टर रोज़ी के बीते जीवन के बारे में वह जानना चाहती थी पर अब भी जान नहीं पाई. एक बार उसने पूछ ही लिया
- "मदर, आपने शादी क्यूँ नहीं की?"

- "की थी."

- "फ़िर?"

- "कुछ भी नहीं."

- "अब वह कहाँ हैं?"

- "उनका तो तभी इन्तकाल हो गया."

- "आपके कोई सन्तान?"

- "थी."

- "सच में आपने कभी उसके बारे में बताया नही."

- "क्या बताती. माई चाइल्ड? अगर आज वह होती, तो तुम्हारे जितनी ही होती."

- "आपके कहने का मतलब है वह भी."

- "हाँ, 'यू आर राइट'. तब वह सिर्फ़ एक दिन की थी उसी के बाद मैं नन बन गयी, सच कहूँ अगर तुम मुझे पहले मिली होती तो मैं नन न बनती. तुम्हारे साथ जीवन गुज़ार देती."

हिना पर इतना असर पड़ा. मदर से तो उसकी नज़दीकियाँ बढ़ती गयीं साथ ही उसका मन परिपक्व होता गया. एक दिन उसने ठान लिया सबकी सेवा करने का. उसके बाद वह अक्सर बाहर जाती रहती. पैसों की कमी न थी. एक बार दिशा दिखा दो, देने वाले पीछे नहीं हटते. उसने सालों मेहनत की. हर कोने में दुनिया भर की खुशियाँ भरने की कोशिश की. प्यार दिया प्यार पाया. गरीबों और बीमारों की मदद की. हर किसी की मदद की. मदर से अब वह कुछ दो एक साल में एक ही बार मिल पाती थी. एक बार इसी सब के दौरान एक नौजवान से उसकी मुलाकात हुई. वह भी सेवा कार्य करता था. बड़े घर का था. दोनों काफ़ी वक्त साथ-साथ गुजारने लगे. हिना को तो नया जीवन सा मिल गया. एक आध बार उसे उसके इरादों पर शक हुआ. पर फ़िर मन का वहम लगा. दोनों ने बहुत सी कसमें खायीं. और साथ साथ भलाई करने की भी. वक्त बीता हिना मदर को बताने की सोच ही रही थी तभी यह क्या? उसका शक सही निकला. वह शादीशुदा था. उसने सिर्फ़ हिना को फ़ँसाने की कोशिश की थी. पर हिना मुस्कुराती रही. उसने तो जैसे हारना सीखा ही नही था. उसके मन में उस युवक के लिए भी कोई शिकवा नहीं था. उसने यह मान लिया कि उसकी भी कुछ मज़बूरियाँ होंगी. पर शादी करने का ख़याल छोड़ दिया. इस बार हिना जब मदर से मिलने आई तो मदर बीमार थी. वह उसे अपनी बेटी की ग्रेव पर रोज़ ले जाती थी. वहाँ बैठकर वे ढेर सारी बातें करते थे. मदर ने एक बार हिना से कहा

- "जानती हो, जिस दिन तुम इस दुनिया में आयी थी उसी दिन मेरी बेटी की मौत हुई थी. कितनी अज़ीब बात है कि तुम्हारी अम्मी की मौत हुई. शायद ऊपर वाले ने हमारी किस्मत साथ में लिखी थी."

- "मदर तुम सोचो कहीं ऐसा तो नहीं, मैं ही तुम्हारी बेटी हूँ. जो कुछ वक्त के लिये तुमसे जुदा हो गयी थी." हिना बोली.

- "नहीं, वह मेरी बेटी थी, उससे मेरा खून का रिश्ता था. पर तुमसे तो मेरा रिश्ता कहीं बड़ा है. यह तो दिल की डोर है." मदर बोली.

ऐसे ही उनकी बातें कभी ख़त्म न होती. मदर चाहती थी कि हिना शादी कर ले पर हिना को लगता था कि शादी उसके सेवा मक़्सद में अड़चन डालेगी. मदर ने भी ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया. कुछ महीने बीते और हिना फ़िर चल पड़ी अपने मक़्सद की ओर. कितनों की ही ज़िन्दगी का खारपन उसने दूर किया. उसका मन बिलकुल निर्मल था. साफ़ सुथरा प्यार से भरा हुआ. इस बीच उसे मदर की बहुत याद सताती. पर फ़र्ज़ उसके लिये भावनाओं से बड़ा था. इस बार वह बहुत दूर निकल आयी थी. वापस मदर के पास पहुँचते पहुँचते उसे तीन साल लग गये. कितनी खुश थी वह और सबसे ज़्यादा खुशी उसे यह सोचकर हो रही थी कि मदर उससे मिलकर कितना खुश होंगी. उसे लग रहा था कि अब इस उम्र में मदर को उसकी ज़रुरत है. और यह वो पूरा ज़रूर करेगी. पर ये क्या? घर में मदर कहीं दिखी नहीं. उसने पूछा तो साथ की सिस्टर ने बताया कि मदर रोज़ी का तो पिछले दिन ही देहान्त हो गया. बेचारी ने मरते वक्त तक हिना को बहुत याद किया. और तो और मदर को बस एक घण्टे पहले ही दफ़नाया गया था. उसके चेहरे पर पीड़ा की लहर आ गयी. पहली बार उसकी आँखों में आँसू थे. मदर ने उसके लिये एक नोट छोड़ा था

- "खुश रहना, मुझे याद रखना और यह भी याद रखना कि एक रिश्ता तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा है."

उसने तुरन्त गाड़ी निकाली मदर की ग्रेव पर जा पहुँची. वहाँ उनकी और उनकी बेटी की ग्रेव के बीच में बैठकर वह बहुत रोयी. और पत्तों को ऐसे समेटा जैसे खोई जागीर मिल गयी है. यह सूखे पत्ते उसने अपने दिल से लगा लिये. और घण्टों वहाँ बैठी यही सोचती रही कि काश वह थोड़ा पहले आयी होती तो शायद मदर बच जाती. खैर शाम हो रही थी. वह उठी और वहाँ से जाने को बढ़ी. गाड़ी चलाते वक्त भी उसके ज़हन में मदर ही थी. तभी ये क्या, एक छोटा सा बच्चा खेलते-खेलते सड़क के बीच में आ गया और उसकी गाड़ी के इतना पास देखकर उसकी माँ की चीख निकल गयी. एकदम से ज़ोर की आवाज़ और सड़क के एक किनारे हिना अपनी आखिरी साँसें ले रही थी. बच्चा माँ की गोद में रो रहा था. हिना सोच रही थी उसे मदर से कोई अलग नहीं कर पाया मौत भी नहीं. माँ बेटी के रिश्ते को निभाते निभाते वह अलग हुई और अब मिलेंगे भी तो माँ बेटे के मिलने पर ही. यह रिश्ता उनका जीवन था या उनका जीवन ही यह रिश्ता था. और मैं यह सब देख रहा हूँ हमेशा से, मैने हिना को देखा है उस पहले दिन से आज तक. उसकी नन्ही उँगलियों से इन हाथों तक. मेरा दिल भी रोने को कर रहा है. पर इससे भी ज़्यादा मेरा दिल कर रहा है हिना के बालों में हाथ फेरने का, उसके आख़िरी चंद लम्हों से उसे यह बताने का कि मैं कौन हूँ. और उससे कितना प्यार करता है. और उससे यह भी कहूँगा कि उस रिश्ते से तुम्हारा ज़्यादा इंतज़ार नहीं हुआ. इसीलिये मुझे अकेला छोड़ तुम्हें अपने पास बुला लिया मैं वो पौधा हूँ जो कभी हिना की दादी के आँगन में हिना को देखता था. आपको विश्वास नहीं हो रहा. होगा कि एक वृक्ष इतना कुछ देख समझ और कह सकता है. पर यही सच है. हिना ने अपने जीवन रूपी रिश्ते या रिश्ते रूपी जीवन को मरते दम तक निभाया. मदर ने सच ही कहा था कि यह रिश्ता तो दिल की डोर है. ज़रूर पिछले जन्म का ही कोई नाता होगा. हिना ने तो निभाया और चली गयी मदर के पास. पर मैं अपना रिश्ता कैसे निभाऊँ? कैसे जाऊँ हिना के पास. मुझे तो अभी सालों जीना है. और हिना का मक़्सद पूरा करना है. सबकी सेवा करनी है. पता नहीं मैं हिना के बिना कैसे जिऊँगा? पर मुझे जीना होगा. हिना तो मेरा एक सर्द पत्ता थी. जो मेरे आँगन में जब तक रही सब कुछ महकाती रही, अभी तो मुझे न जाने कितने सर्द पत्ते इस दुनिया में देखने हैं. शायद उनमें कभी हिना दोबारा मिल जाये. एक नयी हिना शायद उसे एक सर्द पत्ता बनने से बचा लूँ शायद. आप भी कुछ ऐसी दुआ कीजिए, क्यूँकि कहीं ऐसा न हो वो सर्द पत्ता आप ही के आँगन में कहीं पड़ा हो.

© 2009 Akanksha Goel; Licensee Argalaa Magazine.

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