इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिन्दी के पहले और आख़िरी व्यवस्थित साहित्य चिंतक हैं. पहले इसलिए कि उन्होंने हिन्दी में जिस साहित्यशास्त्र की अवतारणा की वह संस्कृत परंपरा से पोषित होते हुए भी उससे भिन्न था. रस सिद्धांत को एक नया जामा पहनाकर शुक्ल जी ने पहली बार हिन्दी में प्रस्तुत किया. ' लोक ' शब्द के महत्व को हिन्दी साहित्यशास्त्र में जिस ऊँचाई पर शुक्ल जी ने स्थापित किया वह आज भी वहीं कायम है. इसी तरह पाश्चात्य काव्य विचारकों के बारे में या सिद्धान्तों के बारे में अ. शुक्ल ने जिस धारणा का विकास किया वह आज भी उसी रूप में विद्यमान है. क्रोचे के अभिव्यन्जनावाद के संदर्भ में मेरे उक्त कथन को जाँचा परखा जा सकता है. अ. शुक्ल को मैंने आख़िरी व्यवस्थित साहित्य चिंतक इसलिए कहा है कि हिन्दी में सैद्धान्तिक समीक्षा का जो ढाँचा उन्होंने खड़ा किया आज भी वह अपनी जगह पर कायम है. बातें चाहे जितनी हुई हों पर सैद्धान्तिक समीक्षा उसी जगह पर है जहाँ शुक्ल जी ने छोड़ा था. अ. शुक्ल के बाद समीक्षा के सैद्धान्तिक पक्ष पर बहुत कम बातें हुई हैं. अगर हुई भी हैं तो छिटपुट और उनसे किसी दृष्टि का बोध नहीं होता. साहित्य समीक्षा के क्षेत्र में भाषण चाहे जितने दिए जाएँ, लेख चाहे जितने लिखे जाएँ पर मुक़म्मल किताब ग़ायब है. किसी भी मुक़म्मल पुस्तक का न लिखा जाना मेरे उक्त कथन को सर्वाधिक बल देने वाला तथ्य है.
अ. शुक्ल ने व्यावहारिक समीक्षा के क्षेत्र में दो तरह से योग दिया है-लम्बी भूमिकाओं के द्वारा और लेखों के द्वारा. मलिक मुहम्मद जायसी, सूरदास और तुलसीदास पुस्तकें लम्बी भूमिकाएँ हैं. साहित्यकारों और उनकी कृतियों पर लिखे हुए उनके कुछ लेख भी इसी श्रेणी में परिगणित किए जाते हैं. यहाँ उन पर चर्चा करना मेरा उद्देश्य नहीं है. कुछ विषयों पर आचार्य शुक्ल जीवन भर चिन्तन मनन और लेखन करते रहे हैं. ऐसा लगता है कि जो बातें वे कहना चाह रहे हों वह पूरी न हो रही हों अथवा उनकी पकड़ से बाहर पड़ती जा रही हो. वे उसे दोबारा पकड़ना चाहते हैं. ' कविता क्या है ' या ' हिन्दी भाषा ' से संबंधित उनके लेखों को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है. इसी क्रम में ' भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ' और उनके साहित्य पर कई कई कोणों से शुक्ल जी जीवनपर्यन्त विचार करते रहे और लिखते रहे. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर उनके कई लेख हैं, यथा-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी, हरिश्चन्द्र समीक्षा, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, युग प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आदि. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र लम्बा लेख है. यह लेख सन 1928 ई. की नागरी प्रचार्णी पत्रिका में छपा था. युग प्रवर्तक भारतेंदु हरिश्चन्द्र सन 1935 का लेख है और वीणा में प्रकाशित हुआ था. पहले लेख की तुलना में यह काफ़ी छोटा है. शेष दोनों लेख क्रमश: 1910 ई. और 1911 ई. के हैं.
अ. शुक्ल ने ' भारतेन्दु-साहित्य ' शीर्षक से एक पुस्तक संपादित की थी. यह पुस्तक 1928 ई. में हिन्दी पुस्तक भण्डार, लहेरिया सराय (बिहार) से प्रकाशित हुई थी. अ. शुक्ल ने इस पुस्तक के माध्यम से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के लेखन की एक बानगी प्रस्तुत करने की कोशिश की है. इसमें उनके गद्य लेखन के विविध रूपों ओ संकलित संपादित करने की कोशिश की गई है. संकलित और संपादित सामग्री का जो महत्व है वह तो है ही, इस पुस्तक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंश है-' भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-परिचय ' शीर्षक से लिखी गई इसकी 16 पृष्ठों की भूमिका. एक तरह से कहें तो यह भारतेंदु पर लिखा गया शुक्ल जी का सबसे लम्बा लेख है. इस लेख का ऐतिहासिक महत्व है. आज भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के व्यक्तित्व, उनकी भाषा नीति, साहित्य आदि पर तरह के प्रश्न उठाये जा रहे हैं, आप देखेंगे कि इस लेख में ऐसे प्रश्नों के उत्तर निहित हैं. यह लेख साफ़ संकेत देता है कि भारतेन्दु साहित्य का अध्ययन हम किस कोण से करें. वैसे साहित्य में मनमानी चाल की परंपरा नयी नहीं है.
' भारतेन्दु साहित्य ' पुस्तक अप्राप्य है. अ. शुक्ल की ग्रंथावली पर काम करते हुए काफ़ी खोजबीन के बावज़ूद यह पुस्तक हाथ न लगी थी. पिछले दिनों आर्य भाषा पुस्तकालय, नागरी प्रचारणी सभा काशी में यह पुस्तक मिल गई. ग्रंथावली के दूसरे संस्करण में इस लेख को जोड़ दिया जाएगा पर इसकी महत्ता को देखते हुए तब तक इंतज़ार करना मुझे संगत प्रतीत न हुआ. अब ' परिचय ' शीर्षक की भूमिका आपके सामने है. भूमिका के कुछ वाक्य हटा दिए गये हैं. ये दो चार वाक्य ऐसे हैं जिनमें शुक्ल जी ने ' भारतेन्दु साहित्य ' के सँग्रह-संपादन के संदर्भ में कुछ कहा है. बाकी सब कुछ वैसा ही है जैसे शुक्ल जी ने प्रस्तुत किया था-हू-ब-हू.
© 2009 Om Prakash Singh; Licensee Argalaa Magazine.
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नाम: ओम प्रकाश सिंह
उम्र: 67 वर्ष
अनुभव: स्नातकोत्तर-17 वर्ष (एम. ए. और एम. फिल.)
- शोध निर्देशन-एम फिल पुर्ण कर चुके शोध छात्रों की संख्या-21
-पी-एच. डी पूर्ण कर चुके छात्रो की संख्या-08
-एम. फिल पी-एच. डी. हेतु पंजीकृत शोध छात्रों की संख्या-24
संप्रति: शोध वैज्ञानिक (हिंदी), भारतीय भाषा केंद्र जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली-67
शोध वैज्ञानिक पद पर नियुक्ति-30 नवंबर
पत्राचार का पता-वार्डन फ्लैट-11, नर्मदा हास्टल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली-110067
प्रकाशित पुस्तकें: 1-आदिकाल एवं मध्यकाल के प्रमुख हिंदी कवि, वेरायटी पब्लिकेशंस, वाराणसी, 1989
2-प्रेमचंद के कथासाहित्य में हिंदू-मुस्लिम संबंध, राधा
पब्लिकेशंस नयी दिल्ली 1995
3-प्रेमचंदोत्तर हिंदी कथासाहित्य में सांप्रदायिक
समस्याएँ, नमन प्रकाशन, नयी दिल्ली 1998
4-आधुनिक काव्यधारा ; विचार और दृष्टि, पूर्वांचल
प्रकाशन, नयी दिल्ली 2001
5-चिंतामणि भाग-4 (संपादन) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
साहित्य शोध संस्थान, वाराणसी. 2002
6-आचार्य रामचंद्र शुक्ल ग्रन्थावली (आठ भाग) (सम्पादन)
प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली 2007
प्रकाशनाधीन पुस्तकें: 1-हिंदी के ऐतिहासिक उपन्यासो में इतिहास और कल्पना
2-भारतेन्दु हरिशचन्द्र ग्रन्थावली (6 भाग)
लेख: प्रकाशित महत्वपूर्ण लेख ; प्रस्तुतिंया और पुस्तक समीक्षाएँ ;
1-भारतेन्दु युगीन राजनीतिक चेतना और मैथिलीशरण गुप्त
नागरी प्रचारिणी पत्रिका (मैथिलीशरण गुप्त विशेषांक), वर्ष 91
अंक 1-4 सवंत 2043 वि, नागरी प्राचारिणी सभा काशी
2-प्रगतिवादी काव्य चेतना और केदारनाथ अग्रवाल, समकालीन हिंदी कविता का सँघर्ष शीर्षक पुस्तक में प्रकाशित, संजय बुक सेंटर वाराणसी, 1990
3-शिक्षा, शिक्षक और समाज, प्राइमरी शिक्षक वर्ष 16
अंक-4, अक्टूबर, 1991. एन. सी. ई. आर. टी. नयी दिल्ली
4-पाठयक्रम का बढ़ता बोझ और सामंजस्य की आवश्यकता, भारतीय आधुनिक शिक्षा, वर्ष नवम अंक त्रतीय, जनवरी 1992 एन. सी. ई. आर. टी. नयी दिल्ली
5-कबीर का मानवतावाद, कबीर मूल्याँकन ; पुनर्मूल्याँकन, विजय प्रकाशन वाराणसी 1995
6-प्रगतिवाद और पलायनवाद के परिप्रेक्ष्य में छायावाद का पुनर्मूल्याँकन, नया मानदंड आचार्य रामचंद शुक्ल शोध संस्थान वाराणसी जुलाई 1997
7-महीयसी महादेवी, पूर्वोदय, राष्ट्रीय विधापीठ सिलचर, असम, अप्रैल-जून, 1997
8-सांप्रदायिक समस्याओ के परिप्रेक्ष्य में राही मासूम रजा के उपन्यास, नया मानदंड सिंतम्बर 1998
9-गलत को गलत कह सकने का साहस, ढाई आखर, कबीर भवन, नयी दिल्ली, 1998
10-भाषा का सवाल; भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और प्रेमचंद, पूर्वोदय, राष्ट्रीय विद्यापीठ सिलचर असम. अप्रैल-जून 1997
11-हिन्दी आलोचना और राजनीति-नया मानदंड जुलाई-सिंतबर 2004, आचार्य रामचंद शुक्ल शोध संस्थान, वाराणसी
12-रक्त, मांस और मज्जा के दर्द से उभरी कविताएँ आजकल, मार्च 2006, प्रकाशन विभाग, पटियाला, हाउस, नयी दिल्ली
13-आचार्य रामचंद शुक्ल की कुछ आप्रकाशित रचनाएँ-संवेद, 2006, संवेद फाउंडेशन
दिल्ली.
एन. सी. ई. आर. टी. और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओ द्वारा प्रकाशित पाठयपुस्तके और शैक्षिक सामग्री-
1-अनुदेशक संदर्शिका
2-पर्यवेक्षक संदर्शिका
3-परियोजना अधिकारी संदर्शिका
4-मिलकर सीखें भाषा, भाग-1, 2, 3, 4
5-मिलकर सीखें परिवेश, भाग-1, 2, 3, 4
(एन. सी. ई. आर. टी. से प्रकाशित)
12-पहला कदम-भाषा
13-दूसरा कदम-भाषा
14-तीसरा कदम-भाषा
15-चौथा कदम-भाषा
( जनकल्याण आश्रम, चांदापुर, शाह्जहाँपुर, उ. प्र. से प्रकाशित)
16-निकेतन भारती भाषा भाग-4, लिटरेसी हाऊस, लखनऊ
17-आकाशवाणी पाठमाला, प्रौढ शिक्षा निदेशालय, नयी दिल्ली
अनुवाद कार्य: - (एन. सी. ई. आर. टी की पाठयपुस्तको के पाठो का अनुवाद
-एन. सी. ई. आर. टी द्वारा सन 2000 में तैयार किए गए
पाठयक्रम के उच्चतर माध्यमिक शिक्षा नामक अध्याय का अनुवाद
-यूनेस्को की पुस्तिका पासपोर्ट इक्वलिटी का समानता का पासपोर्ट
नाम से अनुवाद
सांस्कृतिक एवं कलात्मक गतिविधियाँ: -एन. सी. ई. आर. टी. के शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों में
संदर्भ व्यक्ति के रूप में कार्य
-एन. सी. ई. आर. टी कि हिन्दी सामग्री (पाठयपुस्तको,
संरक्षिकाओं, सहायक सामग्री आदि) के निमार्ण में सहभागिता
-एन. सी. ई. आर. टी.. नीपा, एस. सी. ई. आर. टी. और
लखनऊ पटना. दिल्ली आदि की अनेक स्वैच्छिक संस्थाओं की कार्यशालाओ में सह्भागिता
-उत्तर प्रदेश, बिहार, असम उड़ीसा और राजस्थान प्रांतों में पारियोजना और जिलास्तर पर अनौपचारिक शिक्षा के परियोजना अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमो का आयोजन
-महात्मा गाँधी काशी विधापीठ वाराण्सी,
उदयप्रताप पोस्ट ग्रेजुएट कालेज वाराण्सी, बैसवारा पोस्ट ग्रेजुएट कालेज
लाल्गंज रायबरेली उ.परा तथा अन्य अनेक संस्थाओं में हिंदी साहित्या पर अनेक व्याख्यान
-दिल्ली और दिल्ली के बाहर होने वाले साहित्यक सेमिनारों और गोष्ठियों में सक्रिय भागीदारी तथा व्याख्यान
यात्राएँ: शोध संबंधी तमाम विषयों के लिये कई देशों की यात्राएँ .
संपर्क: वार्डन फ्लैट-11, नर्मदा हास्टल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली-110067