इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
फूल सजा दूँगा तेरे क़दमों के नीचे,
पर वो फूल मेरी माँ के आँचल का हो,
क्यूँकि प्यार करना तो उसने ही सिखाया,
तो फिर माँ से ज़्यादा इन्तज़ार तेरा क्यूँ हो?
ये मौसम बदल जाता है तेरा साथ पाकर,
कभी लगता है कि जी ना पाऊँगा तुमसे दूर जाकर,
पर अभी तो दो दिन हुए भागते प्रेम डगर के पीछे,
और मेरी आँख है खुली थी माँ के हाथ को मुठ्ठी में भींचे,
तो फिर कैसे लगा सकता हूँ डुबकी तेरे ताल में माँ को भुला कर,
फिर भी ये लगता है कि जी ना पाऊँगा तुमसे दूर जाकर.
ये माना कि तेरा ताल बड़ा ही आनंदपूर्ण है,
डुबकी लगाते ही स्वप्नलोक की नीलिमा छा जाती है,
जिसने मुझे डुबकी लगाना सिखाया सहसा उसकी याद हो आती है,
अचानक बाहर निकल मचल पड़ता हूँ उसकी एक झलक पाने को,
एहसास होता है कि माँ का आँचल क्या कम भावपूर्ण है?
ये माना कि तेरा ताल बड़ा ही आनंदपूर्ण है.
तेरे साथ क़दम से क़दम मिला कर चलता हूँ,
वो हाथ थाम मेरा पैर बढ़ाया करती थी,
ज़रा ठोकर लगे तो ख़ुद रो कर मुझे हँसाया करती थी,
अभी ठोकर लगे तो तुमसे सँभाले ना सँभल पाऊँगा,
तो फिर क्यूँ मैं तुम्हें अपना पथ प्रदर्शक कहता हूँ?
फिर भी तेरे साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलता हूँ.
अरे ऐसा नही है कि मैं तुम्हें चाहता नहीं हूँ,
बस इंतज़ार करो कि माँ को पूजता भी हूँ,
अरे तू मिली भी तो मुझको माँ के प्यार के ही कारण,
ज़रा रुक माँ के साथ तुझे ले चलता कहीं हूँ.
तुझे ले चलता कहीं हूँ
© 2009 Pranav Kumar; Licensee Argalaa Magazine.
This is an Open Access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original work is properly cited.
नाम: प्रणव कुमार
उम्र: 40 वर्ष
जन्म स्थान: बेगुसराय (बिहार)
प्रकाशित रचनायें: प्रकाशित पुस्तकें
अभिरूचियाँ: कविता लिखना
सांस्कृतिक एवं कलात्मक गतिविधियाँ: एक फ़िल्म निर्माण समूह में शायक निर्देशक; कुछ फ़िल्मों के लिये गीत लिखन; ड्रामा और लघु फ़िल्म में अभिनय
संपर्क: डी-24/A-2, एम. आई. टी. हॉस्टल, मणिपाल - 576104, कर्नाटक