इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
आज मैं बड़े गर्व से पुराने पड़े जूते
ठीक करवा रहा हूँ.
वो इराकी जूते,
जोकि तपती रेत में झुलस गये,
जिस देश की रेत में बारूद मिला दिया गया.
वो वियतनामी जूते,
जो अपने ही देश में दफ़्न पाये गये,
जिनकी कब्रों पर कोई पहचान नहीं दर्ज़ हो पाई
वो फिलिस्तीनी जूते,
जो अपने ही घर में अपना रास्ता भूल गये,
जिन्हें हत्यारे बंदी बना ले गये.
वो अफगानिस्तानी जूते,
जिन्हें तेल के कुओं में डालकर आग लगा दी गयी,
जिसके बादल से वहाँ पानी भी न बरसा.
ठीक तो बहुत कुछ करवाना है
और इसीलिए, आज मैं वापस लौट रहा हूँ
कि आज कविता लिखने की अपेक्षा
जूते ठीक करता, या जूते की तमीज से
कविता ठीक करना, ज़्यादा कारगर है.
आज तक मैं कविता,
हसिए और हथौड़े की तमीज से लिखता था,
लेकिन अब जूतों की तमीज से भी लिखूँगा.
सुना है वो जूता नष्ट कर दिया गया है
कितने जूते नष्ट करोगे
जूते तो इतने हैं कि
व्हाइट हाउस के इतिहास पर,
जॉर्ज वाशिंगटन से ओबामा तक
पैटिंयाट एक्ट से न्यूक डील तक
वर्ल्ड बैंक से डब्ल्यू.टी. ओ. तक
हिरोशिमा से अबू गरीब तक
तुम्हारे गढ़े गये मठों के इतिहास पर
हर रोज़ मारे जा सकते हैं.
पूरी सदी खून से लतपथ जूतों से पटी हुई हैं.
कितने जूते अभी ताबूतों से निकाले जाने बाकी हैं
जिनका हिसाब न सी. एन. एन. के पास है,
न बी. बी. सी. के पास है,
और न ही अमेरिका के वायस में है.
लेकिन हमारे पास उनका हिसाब है
हम उसका अनुमान,
केवल शेयर मार्केटों के उछाल से लगा सकते हैं.
बंद कर दो सी. एन. एन., बी.बी.सी. और वायस ऑफ़ अमेरिका
अगर पूछ सकते हो तो पूछो
युद्ध में जितने जूते बिखरते हैं,
शेयर मार्केट उतने ही क्यों चढ़ते है.
अगर बाँध सकते हो तो बाँध दो
शेयर मार्केटों के ग्राफ को फीते की तरह जूते में
और उसे दे मारो उन तमाम दलाल अर्थशास्त्रियों के मुँह पर
और कहो कि ये हमारे जीवन का पैमाना नहीं हो सकता.
बताओ उन्हें कि
बारूदों की गंध से सुलगती हुई
बलात्कार से चिघ्घाड़ती हुई
भगदड़ से काँपती हुई
रात की दास्तान हमारी दुनिया में
केवल बिखरे हुये जूते लिख रहे हैं.
तुम इसे नष्ट करना भूल गये थे.
तुम भूल गये थे
कि, हमारी दुनिया में जूतों की पहचान रिश्तों से होती है,
अम्मा के जूते
बाबू के जूते
पिताजी के जूते
हमारी दुनिया में जॉगिंग शू नहीं होता,
नाइट शू नहीं होता,
पार्टी शू नहीं होता.
बोलीविया के जंगलों में
नष्ट कर दिया तुमने हमारे हीरो को
हाथ तक काट डाले थे तुमने
इतना डर गये थे कि तुम्हें हाथ कटवाना पड़ा
लेकिन हर बार कि तरह, इस बार भी जूते नष्ट करना भूल गये
भूल गये कि
इन जूतों का एक जोड़ा फिदेल कास्त्रो भी है.
भूल गये कि
इन जूतों का एक जोड़ा हो ची मिन्ह भी है
भूल गये कि
इन जूतों का एक जोड़ा यासर अराफात भी है.
भूल गये कि
इन जूतों का जोड़ा मंतदेर अलजैदी भी है
ऐसा ही जूता हमारे हृदय में भगत सिंह भी है,
हिंदुस्तान आओ तो सही.
लेकिन उससे पहले एक फ़तवा
हम स्वाभिमानी हिन्दुस्तानी क़ौम की तरफ से,
तुम्हें आई लव यू बोलने वाले,
तुम्हें प्यार करने वाले, अपने मुल्क के सरपरस्त के नाम
कि अगली बार तुम्हें काले झंडे नहीं दिखायेंगे.
यह जूता उन सभ्यताओं की तरफ से है
जिसके उद्गम स्थल पर बैठा एक आदमी,
चमड़ा उबाल रहा है
और एक आदमी नाव में बैठकर कुछ खोजता हुआ जा रहा है.
यह जूता उन संस्कृतियों की तरफ से है
जिसके मुहाने पर बैठकर एक मोची
जूतों में कील ठोंक रहा है.
यह जूता उन करोड़ अश्वेत जातियों की तरफ से
उस व्यवस्था को है, जहाँ एक आदमी
मोची और अपनी ही जमीन पर जानवर बना दिया गया है.
यह जूता अफ्रीकी, इराकी, फिलिस्तीनी, अफ़गानिस्तानी, क्यूबन
वियतनामी, दक्षिण अमेरिकन और दुनिया के उन तमाम बच्चों की तरफ से है
जो अलीबाबा और सिंदबाद के किस्से सुनते हुये
भूखे पेट लंबी नींद सो गये हैं
या तुम्हारे जंगी बेड़ों से हमारे होश की तरह, उनके जिस्म उड़ा दिये गये हैं.
यह जूता उन तमाम सर्वोत्तम शहीदों, कवियों और क्रांतिकारियों की तरफ से है
जो स्पार्टाकस की तरह
एक और मई दिवस की तलाश में
लाल चौक पर डटे हुये हैं.
यह जूता तुम्हारी उस आदिम युद्ध संस्कृति पर है
जो हिलटर के साथ आदिम कबीलों में
धनुष और भाले के साथ दफन हो जाने चाहिये थे.
अगर मैं लौट सकता
1492 की उस सुबह
तो ये जूता कोलंबस के मुँह पर मारता
और कहता, कोलंबस माफ करना
इतिहास जब अपने को दोहराते हुये, वापस लौटता है
तो वह बहुत निर्दयी होता है,
कुछ सत्य लेकिन अप्रिय सत्य
दफ़न कर दिये जायेंगे,
तुम्हारे सफर के रास्ते पर जूते बिछा दिये जायेंगे.
देखो इसे,
पहचानो इसे,
इतनी बर्वरता कोलंबस!
कि वह अपने चरम पर तलुओं की तरह घिस गयी है
देखो कोलंबस कुछ जूते कितने मासूम है
कितने कोमल हैं इनके रेशे, इन्हें ग़ौर से देखो
छाती के दूध से बने हुये
इसे अगर बारूद और ख़ून से दूर रखा गया होता.
भूल गये थे क्या कोलंबस!
इस द्वीप पर ख़ून और खिलौनों के अंतर की नींव रखना,
महसूस कर सकते हो
इन छटपटाते हुये,
इन तड़पते हुये जूतों को.
इनमें जूते उन माँओं के हैं
जिनका ममत्व कोयले की तरह झुलस गया है.
इनमें जूते उन प्रेमिकाओं के हैं
जो पहाड़ों पर बैठकर
बसंत के गीत गाना चाहती थीं.
इनमें जूते उन विधवाओं के हैं
जो अपने शौहर की शहादत के बाद
मुल्क़ की आज़ादी का ख़ाव देख रही थीं.
इनमें जूते उन पिताओं के हैं
जो बच्चों को कंधे पर ले
तितलियों का रंग देखना चाहते थे.
इनमें जूते उन किसानों के है
जो फसल पकने के इंतज़ार में
मेड़ों पर रात अगोर रहे थे.
इनमें जूते उन मजूरों के हैं
जिनको गोली मारने से पहले
तुमने मशीनों में जकड़ दिया था.
हम लौट सकते नहीं
हम एक दिन लौटेंगे, केवल 1492 की सुबह ही नहीं
उन तमाम तरीखों की तरीखियत को रद्द कर देने,
उन तमाम इतिहासों को दफन कर देने,
जो लोकतंत्र के नाम पर लाशों का ढेर बना दिया गया है.
तुम्हारी युद्ध संस्कृति को, तुम्हारी ही धरती पर
एक दिन हम दफन करने ज़रूर आयेंगे
वापस लौटते समय, एक बार
दुनिया को ज़रा ग़ौर से देखना,
ग़ौर से देखना स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी के नीचे झाँककर
परछाइयों में, युद्धरत स्पार्टाकस
तुम्हारी पहचान बदल रहे होंगे.
और अपने ही देश में दफन पाये गये जूते
अपनी कब्रों पर पहचान लिख रहे होंगे.
देखो ज़रा ग़ौर से देखो, इस बार
तुम्हारी सीनेट कितनी लाचार है.
तुम, दुनिया के तमाम सभ्य लोग देखो
हमारी असभ्यता तुम्हारी सभ्यता से कितनी उर्वर और रचनात्मक है.
माँये रेशमी जूतों को गोद में ले, लोरियाँ गा रही हैं,
प्रेमिकायें पहाड़ों पर बसंत के गीत गा रही हैं,
और रिश्ते तितलियों का रंग देख रहे हैं.
वे जूते अपने घर को वापस लौट रहे होंगे
जो तुम्हारी हत्यारी महत्वाकांक्षाओं से
अपने ही मुल्क़ में अजनबी है.
वे जूते ताबूतों से बाहर निकल रहे होंगे,
बाहर निकल रहे होंगे वे जूते
जो दुनिया में, और तुम्हारे अंदर
जीने की तमीज़ पैदा करना चाहते हैं.
वे सब वापस लौट रहे होंगे
केवल 1492 की सुबह ही नहीं.
क्योंकि इतिहास जब अपने को दोहराते हुए.
© 2009 Ravi Prakash; Licensee Argalaa Magazine.
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