अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

Language: English | हिन्दी | contact | site info | email

Search:

विरासत

विष्णु प्रभाकर

जोतिमय बाग द्वारा विष्णु प्रभाकर का साक्षात्कार

जोतिमय बाग: विष्णु जी, नारी-मुक्ति आंदोलन के संदर्भ में आप आज की नारी और शरत बाबू की नारी को कैसे देखते हैं?

विष्णु प्रभाकर: देखो आज की नारी जिस धरती पर खड़ी है, उसको शरतचंद्र ने ही ठोस रूपाकार प्रदान किया है. शरतचंद्र ने वह भूमिका तैयार कर दी थी जिस पर आज नारी-मुक्ति आंदोलन कर आगे बढ़ रही है.

जोतिमय बाग: क्या आप कुछ उदाहरण देकर अपनी बात की पुष्टि करना चाहेंगे?

विष्णु प्रभाकर: बिलकुल, तुम शरतचंद्र के किसी भी नारी पात्र को ले लो उसका एक अलग संसार होगा, एक अलग अस्तित्व होगा. शरतचंद्र के नारी पात्र अपने अस्तित्व का खुद निर्माण कर लेते हैं., अपने अस्तित्व के लिए वह किसी भी पुरुष सत्ता से भीख नहीं माँगते हैं. बल्कि, शरतचंद्र के नारी पात्र की प्रखण्डता के आगे पुरुष पात्र स्वयं अपना अस्तित्व, परिचय तलाशते फिरते हैं. अब अपूर्व और भारती को ले लो, वर्मा में अपूर्व, भारत के परिचय होता है. आत्मरक्षा का जब प्रश्न उठता है तो भारती पिस्तौल तक निकाल लेती है. भारती की प्रखण्डता, साहसी रूप को देखकर अपूर्व दंग रह जाता है.

जोतिमय बाग: विष्णु जी, शरत बाबू के बारे में कहा जाता है कि उनको नारी हृदय की जटिलताओं, अंतर्विरोधों को दर्शाने में महारत हासिल हैं. आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?

विष्णु प्रभाकर: शरतचंद्र को नारियों के हृदय की छटपटाहट को दर्शाने में महारत हासिल तो है ही. बात यह है कि आखिर शरतचंद्र में ऐसा क्या है कि जो उनके यहाँ 'यूनिक' है. शरतचंद्र के पात्र निकृष्ट हैं, किंतु यह शरतचंद्र की कलात्मकता है कि उन्होंने निकृष्टता में भी उत्कृष्टता भर दी है. उनके पात्र पतित हैं, वेश्या हैं, कदाचित भद्र लोक इनके दर्शन तो दूर, नाम मात्र से ही दूर हट जायें. शरतचंद्र ने इन चरित्रों को नवीन अस्तित्व प्रदान किया है. उन्होंने अपने लेखों में इन पतित नारियों के संसार का वर्णन किया है, उनकी पीड़ा, मजबूरी, त्याग आदि को दर्शाकर, इस तबके को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया है. आज बंगला समाज ही नहीं संपूर्ण भारत अगर इन वेश्याओं पर सोच, विचार कर रहा है तो मानो इसमें कहीं न कहीं शरतचंद्र का ही अवदान है.

जोतिमय बाग: शरतचंद्र के आलोचक कहते हैं कि वे स्वयं भी इन वेश्याओं के बीच रहते थे, इन्हीं कारणों से शरत बाबू को बंगाली बुद्धिजीवियों के कोपभाजन का शिकार भी बनना पड़ा था. क्या आपके पास कुछ जानकारी है?

विष्णु प्रभाकर: देखो, शरतचंद्र पर लिखी किताब का शीर्षक मैंने 'आवारा मसीहा' दिया है. अगर शरतचंद्र आवारा मस्तमौला थे, तो वह एक सचेत लेखक के रूप में मसीहा भी थे. इस पुस्तक को प्रकाशित करने में मुझे 14 साल लगे. इन 14 वर्षों में मैंने शरतचंद्र से संबंधित सभी तथ्यों को एकत्रित करने का प्रयास किया है. यह प्रयास कितना सार्थक है यह तो पाठक ही बेहतर बता सकते हैं, हाँ इस दौरान मुझे इस बात का पता चला कि शरतचंद्र के पतित पात्र, मात्र कल्पित नहीं हैं. ऐसे पात्र उनके जीवन में आए हैं, रहे हैं.

जोतिमय बाग: आपके कहने का मतलब शरतचंद्र के पात्र जीवंत हैं, वह बंगाल के वेश्यालय के ही प्राणी हैं?

विष्णु प्रभाकर: कदाचित, वैसे शरतचंद्र के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने कुछ उपन्यासों के 'प्लॉट' वही बुने हैं. ऐसे में हम कह सकते हैं कि वह 'प्लॉट' सोचते नहीं हैं, बल्कि देखे को बयान करते हैं. घटनाएँ उनके सामने घटती हैं, बस रूप बदल कर कागजों में अवतरित हो जाती हैं.

जोतिमय बाग: अच्छा विष्णु जी, शरतचंद्र पर आरोप है कि उनके नारी पात्र कभी-कभी सारी मर्यादाओं को लाँघ जाते हैं. इस बारे में आप का क्या कहना है?

विष्णु प्रभाकर: इसमें हर्ज क्या है, ऐसी मर्यादा जिसका निर्माण पुरुषों ने पुरुष प्रधान समाज में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए किया हो, उसे लाँघ जाने में हर्ज क्या है. यह अतिश्योक्ति नहीं है. इसका परिणाम हम आज की लेखिकाओं के लेखों में देख सकते हैं. शरतचंद्र ने हमें ऐसे चरित्र दिए हैं जिस पर बाद की पीढ़ी ने लेखनी की हैं. यानि ऐसे चरित्रों का चित्रण तब भी सार्थक था और आज भी....

जोतिमय बाग: विष्णु जी आप अपने नारी पात्रों की तुलना शरत बाबू के नारी पात्रों से किस प्रकार करते हैं?

विष्णु प्रभाकर: देखो, मैं अपने नारी पात्रों की तुलना शरत बाबू के नारी पात्रों से नहीं करना चाहता हूँ. तुलना करना, बराबरी करना यह पाठकों का काम है. हाँ इतना अवश्य कहूँगा कि मेरे नारी पात्रों की अलग विशेषताएँ हैं. वह विरोधी परिस्थितियों में भी जीना जानती है. चाहे तुम 'निशिकांत' की 'कमला' ले लो, या 'तट के बंधन' की नीलम या 'स्वप्नमयी' की अलका और यही विशेषता मैं अपने नाटक और एकांकियों के बारे में भी कहना चाहूँगा.

शेष अगले अंकों में...

© 2009 Vishnu Prabhakar; Licensee Argalaa Magazine.

This is an Open Access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original work is properly cited.