गंगाप्रसाद विमल जी को याद करते हुए

गंगाप्रसाद विमल सर को यूं देखते रहना मानो पूरी दुनिया को पवित्र आंखों से देखने जैसा अहसास है। विमल सर जैसा अक्ष नक्श और वुजूद मानो बीहड़ में खिले फूलों का पर्वतशिखर उमगा हो। नदी बह रही हो मद्धम मद्धम। हवा में फैली हो एक खुशबू। आसमान में सारे नक्षत्र आपस मे हंसी ठिठोली करते हों।

ऐसा अद्भुत गुरु ऐसा अदम्य व्यक्तित्व ऐसा आशावान विचार और ऐसी जीवटता कहाँ भला किसी में मिलेगी भला।।

गुरुओं की सारी परम्पराओं की तमाम परिपाटियों से अलग अक्षत विराटता और अगाध प्रेम का मानस अब भला धरती कैसे खोजे ।।

हूँ मैं मानता हूँ

हाँ मैं जानता हूँ

यहीं कहीं यूँ ही

बैठे हैं आप बुद्ध सरीखे

कहूँगा नहीं कुछ

सिर्फ सोचने भर से आपकी आंखें भर देंगी प्रकाश।

उजालों में देखा गुरु एक विशाल भूमण्डल

एक दुनिया है भीतर जहां महिमा है आपकी।

सादर नमन ।।


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