इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
अनिल पु. कवीन्द्र ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से हिन्दी अनुवाद में पी-एच. डी. की उपाधि हासिल की. इनका शोध विषय हरिवंश राय बच्चन के अनुवादों में निहित अनुवाद दृष्टि था. इन्होंने इसी विश्वविद्यालय से केकी एन. दारूवाला के काव्य संग्रह 'ए समर ऑफ़ टाइगर्स' का हिंदी अनुवाद 'चीतों की फ़सले गर्मा' लघु शोध विषय पर सन 2005 में एम. फ़िल. एवं सन 2002 में हिन्दी साहित्य में एम. ए. की उपाधि प्राप्त की. इन्होंने एम. ए. के दौरान सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला पर विशेष रूचि के तहत कार्य किया है. इन्होंने युइंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद से स्नातक की उपाधि हासिल की. इनके मुख्य विषय हिन्दी, प्राचीन इतिहास एवं शिक्षाशास्त्र थे. इनके सृजनात्मक लेखन की शुरूआत 12 वर्ष की अल्पायु में हो चुकी थी और 14 वर्ष की आयु में पहली रचना 'मुकाम', सरिता (दिल्ली प्रेस) में प्रकाशित हुई. इसके बाद यह रचना कर्म उनकी ज़िंदगी से हमेशा के लिये जुड़ गया तथा तमाम साहित्यिक, गैर साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में इनकी साहित्यिक गतिविधियों के तमाम अंश - कविता, कहानी, लेख, निबंध, पत्र, नाटक इत्यादि प्रकाशित हुए.
इन्होंने कहानी में विशेष रूचि के तहत कहानी कला का पत्राचार पाठ्यक्रम अंबाला छावनी हरियाणा से किशोरावास्था में ही सन 1996 में पूर्ण किया. इनकी काव्य धारा और कहानी लेखन ने इन्हें देश की तमाम सक्रिय और विख्यात साहित्यिक एवं लोकप्रिय पत्रिकाओं - हंस, सरिता, कादम्बिनी, मुक्ता, प्रस्ताव, गुड़िया, नवनीत, महकता आँचल, उन्नयन आदि में रचनाओं का प्रकाशन कर बेहद सराहा. नाटकों के क्षेत्र में अभिरूचि होने की वज़ह से ये इलाहाबाद नाट्य संघ के ग्रुप पारसोना नाट्य संस्थान के साथ 1995 - 2000 तक अभिनय एवं लेखन से जुड़े रहे. बहुमुखी प्रतिभाशाली होने के कारण इनकी रुचि का सबसे बडा केंद्र चित्रकला भी रहा जिससे इन्हें चित्रकला प्रदर्शनी में दर्जनों कऊतिओं के प्रदर्शनी के कारण तमाम शहरों में ख्याति हासिल हुई. साथ ही साथ इन्हें साहित्यिक गतिविधियों एवं कला संस्कृति में निरन्तर योगदान हेतु ढेरों प्रशंसा पत्रों एवं पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया. इसके अतिरिक्त ये म्युज़ ऑफ़ मरमर - स्पेशल कलेक्शन ऑफ़ आर्ट एण्ड पोएट्री - 2008 (शहर दिल्ली से प्रकाशित), अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में सह - संपादक के रूप में कार्यरत रहे. वर्तमान समय में इससे जुड़े रहकर 2009 के अंक हेतु कार्य कर रहे हैं. ये इसी वर्ष 2008 में इण्डियन स्पोर्ट एण्ड कल्चरल सोसाइटी (चेयरपरसन - नफ़ीसा अली) में सलाहकार के रूप में चुने गये एवं भारतीय खेल एवं युवा प्रतिभा व स्वास्थ हेतु निरन्तर सक्रिय कार्य कर रहे हैं. हाल ही में इन्हें श्री दाताराम (कारगिल शहीद) राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
वह दूसरी भाषाओं की उत्कृष्ट साहित्यिक कृतियों का हिन्दी में अनुवाद भी कर रहे हैं जिससे कि वह बीच के फ़ासले को कम से कमतर कर सकें और विश्व साहित्य आम हिन्दी जनमानस के मस्तिष्क पटल पर उनकी भाषा में उन्हें अनुभूति प्रदान कर सके.
अर्गला इनके दिमाग़ की उपज है अर्गला इनके एक उपन्यास की नायिका है. यह उपन्यास हाल ही में पूर्ण किया गया है. इस उपन्यास में अर्गला एक ऐसी स्त्री के चरित्र के रूप में सामने आती है जो कि एक कलाकार के प्रेम में गिरफ़्तार है और उसकी कलाकृतियों का हिस्सा बनना चाहती है. उन्होंने हाल ही में तीन कविता संग्रह - ख़िलाफ़ हूँ मैं, दीवार और पीली घास पूर्ण किये हैं और सभी अभी प्रकाशनाधीन हैं. अगले वर्ष विलियम बटलर ईट्स के कार्यों का अनुवाद करने के लिये आयरलैण्ड जा रहे हैं. उसके साथ ही वह वहाँ जेम्स ज्वायस के कार्यों का भी अनुवाद करेंगे. जेम्स ज्वायस जो यूलिसीस के लिये विख्यात हैं जिसे आधुनिक साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है.
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पुष्कर रविन्द्र ने यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन, आयरलैंड से बायोइन्फार्मेटिक्स के क्षेत्र में पी-एच. डी. एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से विद्युत अभियांत्रिकी में स्नातक की उपाधियाँ प्राप्त की हैं. उन्होनें छ: वर्षो से भी अधिक बायोइन्फार्मेटिक्स के क्षेत्र में जीव विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी के विभिन्न पहलुओं का अनुभव प्राप्त किया है. उन्होंने पी-एच. डी. के दौरान मानव प्रतिरोधी विषाणु (एच. आई. वी.) जिसके संक्रमण से एड्स जैसी भयानक बीमारी होती है, पर शोध किया है, . इस कार्य को करने की प्रेरणा के पीछे तथ्य यह था कि भारत में बीस लाख से भी अधिक एच आई वी पीड़ित रोगी हैं और भारत एड्स पीड़ितों की संख्या के मामले में सिर्फ़ दक्षिण अफ्रीका और नाइज़ीरिया से ही पीछे है. वर्तमान में वह जीनोम, चेन्नई में शोध कर रहे हैं.
पूर्व में इन्होनें मिगेल हर्नांदेज़ विश्वविद्यालय, अलीकांटे, स्पेन में ढाई वर्ष से अधिक समय तक अनुसंधान कार्य किया है. उस दौरान इन्होंने स्पेन की वजह से, जो कि शेनेगन देशों का हिस्सा है, कई देशों की भाषाओं और संस्कृतियों का अनुभव किया. इन्होंने दिल्ली के ज़िनॉमिक्स एण्ड इन्टिग्रेटिव बायोलजी संस्थान में डेढ़ साल तक प्रो. समीर कु. ब्रह्मचारी (वर्तमान में सी. एस. आई. आर. के महानिदेशक) के साथ काम किया है. उनके कई अंतराष्ट्रीय प्रकाशन हैं जिनमें दुनिया की मशहूर जैवसूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित कई पत्रिकाएँ हैं. इन्होंने ASM प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तक "इवोल्यूसनरी बायोलॉजी ऑफ़ बैक्टीरियल एण्ड फंगल पैथोजेंस" के एक अध्याय में भी लेखन कार्य किया है. इन्हें जर्मनी, स्पेन ,ब्रिटेन, स्वीडन, हॉलैंड, आयरलैण्ड, इज़राइल ,भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों में वैज्ञानिक व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया. इन्हें यात्रा करना काफी पसन्द है और वह यूरोप के अधिकांश देशों व कैलीफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका का भ्रमण कर चुके हैं. भारत में वह दिल्ली, भुवनेश्वर, मैसूर, बेंगलुरू और चेन्नई घूम चुके हैं. इस साल इन्होंने एशिया महादेश, खासकर मलेशिया और सिंगापुर को घूमने की योजना बनाई है. इन्हें कुछ अंतर्राष्ट्रीय भाषाये, मुख्य रूप से स्पेनिश, इटालियन, फ्रेंच व रोमानियन की भी जानकारी है.
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