डॉ. अनिल पुष्कर का जन्म 2 अक्टूबर को इलाहाबाद में हुआ, यह जो क्षेत्र है दरअसल इसे त्रिवेणी संगम कहा जाता रहा है और शास्त्रार्थ की परम्परा तथा प्रसिद्ध हिंदी लेखकों की भूमि होने के नाते जाना जाता है। डॉ। पुष्कर बाराबंकी में पले-बढ़े यहाँ पारिजात वृक्ष है और बरसों से देवा शरीफ का मेला लगता आ रहा है। इनकी प्राथमिक शिक्षा आनंद भवन स्कूल, बाराबंकी से हुई और आगे की पढाई मदर टेरेसा कॉन्वेंट स्कूल, इलाहाबाद में हुई। इसके बाद जूनियर हाई स्कूल के लिए रंजीत पंडित इंटर कॉलेज, नैनी में दाखिला लिया जहाँ लम्बे अरसे तक हिंदी के सुप्रसिद्ध मध्यकालीन आलोचना के शिरोमणि डॉ। किशोरीलाल ने अध्यापन किया। डॉ। पुष्कर लम्बे समय तक उनसे और उनके कामों से जुड़े रहे। उच्चतर हाई स्कूल जमुना क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद से पूरा हुआ। बाद में वे यमुना नदी के किनारे बसे इविंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद से बीए (हिंदी, शिक्षाशास्त्र और प्राचीन इतिहास) की पढ़ाई पूरी करने के लिए आये।
डॉ. पुष्कर कम उम्र से ही लेखक होने का सपना संजोये हुए हैं। यूँ तो उन्होंने 10 – 12 बरस की उम्र में ही कवितायें लिखनी शुरू कर दी थीं किन्तु 12 बरस बरस तक आते-आते इनकी कविताएं पत्रिकाओं में जाने लगीं और और आगे आने वाले समय में जल्द ही छपने भी लगी थीं। उनकी पहली रचना ‘मुकाम’ दिल्ली प्रेस द्वारा मुक्तक छंद में इसी दौरान प्रकाशित हुई। आगे चलकर वे साहित्य की तमाम विधाओं से जुड़े – कहानियों, नाटकों और विभिन्न कला रूपों और स्केचिंग, जलरंग व तैलचित्र की ओर भी रुझान बनाये रखा पार्सोना नाटी संस्थान से वो 1995 में जुड़े। जहाँ से नाटकों के प्रति गम्भीर रूचि और अभ्यास शुरू हुआ। यहीं से स्क्रिप्ट राइटिंग की तरफ भी गये और सन 1998 में ही आल इण्डिया सॉर्ट प्ले में अपना नाम दर्ज किया।
इसके साथ ही उन्होंने किशोरवय उम्र में रहते हुए ही हिंदी में विभिन्न विख्यात पत्रिकाओं – कादम्बिनी, हंस, सरिता, तरुण घोष, प्रस्तव, महकता आंचल, गुड़िया, सरस सलिल, नवनीत आदि में कविताएं, मुक्तक, कहानियां और पत्र सहित तमाम तरह से उपस्थिति दर्ज की। तकरीबन 100 से अधिक तैलचित्रों का प्रदर्शन विभिन्न शहरों में किया और विभिन्न प्रदर्शनियों में रेखाचित्र व पेंटिंग्स तथा कहानी और कविता लेखन प्रतियोगिताओं में कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तरों पर ढेरों पुरस्कार जीते।
ग्रैजुएशन पूरा होते ही वह नई दिल्ली चले गए जहाँ उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से हिंदी साहित्य में एम.ए. और हिंदी अनुवाद में एम.फिल. की डिग्री प्राप्त की, एम.ए. अंतिम वर्ष में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की साहित्यिक उपलब्धियों पर काम किया और एम.फिल. में उन्होंने केकी एन. दारुवाला द्वारा के द्वारा रचित कविता संग्रह ‘ए समर ऑफ टाइगर्स’ का अनुवाद ‘चीतों की फ़सले-गर्मा’ के बतौर किया। जेएनयू में आगे अध्ययन जारी रहा जिसके कारण ही हरिवंशराय बच्चन की अनुवाद दृष्टि विषय से पीएचडी पूरी हो सकी। उनके इस शोध कार्य को 2014 में रूबी प्रेस द्वारा ‘हरिवंशराय बच्चन की अनुवाद-दृष्टि’ के रूप में प्रकाशित भी किया।
सन 2009 में जेएनयू में रहते हुए शोधरत रहते हुए ही उन्होंने अर्गला, इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका की स्थापना की। यह उनके उपन्यास ‘अर्गला’ की नायिका से प्रेरित था, जिसे 2023 में शिल्पायन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया। ‘म्यूज़ ऑफ़ मर्मर’ – 2008, कला और कविता विशेषांक के लिए प्रोडक्शन असिस्टेंट के रूप में भी काम किया। बाद में वे जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट (जेएनएमएफ), सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरू (खंड 56 & 57, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) के हिंदी अनुभाग के लिए शोध सहायक के रूप में शामिल हुए।
सन 2013 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ‘हिंदी क्षेत्र के जन-आंदोलनों में पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका’ पर पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप के तहत शोध कार्य में लग गये। अपने इस कार्यकाल के दौरान, इलाहाबाद वि वि में स्नातक छात्रों को हिंदी साहित्य भी पढ़ाया। इसके अलावा उन्होंने अमरकांत, नामवर सिंह, गंगा प्रसाद विमल, वरयाम सिंह, जगदीश गुप्त, किशोरी लाल, मैत्रेयी पुष्पा, नीलाभ अश्क, उदय प्रकाश, अजीत कुमार, हिमांशु जोशी और आचार्य निशांत केतु सहित कई प्रसिद्ध कला और साहित्यिक हस्तियों के साक्षात्कार लिए और संस्मरण लिखे जो कि सदी के नायाब हस्ताक्षर – खण्ड – 1, 2 के रूप में शिल्पायन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किये गए।
सन 2019 में कवि को उनके कविता संग्रह ‘राजधानी ’ (लोकोदय प्रकाशन) के लिए लोकोदय नवलेखन से सम्मानित करने की घोषणा हुई, और ‘हरिवंशराय बच्चन की अनुवाद-दृष्टि’ (रूबी प्रेस) पर उनके अनुवाद कार्य के लिए ‘निर्मला स्मृति साहित्य पुरस्कार’ से नवाजा गया। उन्हें युवा कवियों कि श्रृंखलाओं में ‘युवा द्वादश -6’ (बोधि प्रकाशन) द्वारा प्रकाशित पुस्तक में हिंदी के बारह युवा कवियों में भी चुना गया।
डॉ। पुष्कर देश के कई हिस्सों में लगातार भ्रमण करने के पश्चात फिलहाल कोलकाता में स्वतंत्र लेखक के रूप में काम कर रहे हैं। अगले उपन्यास के लिए बंगाल की स्थितियों का जायजा ले रहे हैं और भ्रष्ट शिक्षा जगत को लेकर काम करने में जुटे हुए हैं इसके तहत शिक्षाविदों की राजनीति के बारे में खुलकर बात की गई है साथ ही कुछ कविता संग्रहों में लगे लगे हुए हैं। साथ ही प्रो. गंगाप्रसाद विमल की आत्मकथा के साथ साथ गंगाप्रसाद विमल रचनावली सम्पूर्ण खंडों का संकलन एवं सम्पादन करने के कार्य में भी लगे हुए हैं.