





चीतों की फस्ले-गर्मा / केकी एन. दारूवाला

विकल्प प्रकाशन / 2024 / 95 पृष्ठ / 300 रु.
अनुवाद एवं सम्पादन: अनिल पुष्कर
जल्द ही उपलब्ध
ए समर ऑफ़ टाईगर्स काव्य सँग्रह की कविताएँ वर्तमान समय में तमाम सामाजिक सांस्कृतिक ऐतिहासिक उलझनें बेचैनी व्यथा और आहत त्रासदिक संवेदना की मार्मिक तस्वीरें हैं . जिनका केंद्रीय तत्व है . – यातना में घुली हुई ज़िंदगी से उपजी इस सृष्टि के विभिन्न रूप – प्रकृति पशु व्यक्ति आदि में कहीं न कहीं मौज़ूद है . मुमकिन है . केकी एन . दारूवाला की ये कविताएँ उन क्षणों की जीवित परंपरा है . जो या तो अभी तक सृष्टि के किसी कोने मौज़ूद हैं या फ़िर वे हमारे इतिहास या अतीत का हिस्सा हैं सदियों से चले अ रहे प्रेम युद्ध और शान्ति के बीच की टूटन बिखराव विखण्डन इन कविताओं में गहराई से मौज़ूद है . इतिहास से होते हुए भौतिक धरातल तक व्यक्ति के भीतर मौज़ूद ज़ख्म चोटों के निशान अभी तक कविता के हृदय में ताज़े जान पड़ते हैं. कवि खोजता है उन्हीं सवालों के निशान जवाब बने कई स्थितियों से बिलकुल वैसी ही सूरत में आज भी हमारे सामने खड़े हैं कभी रूप बदलकर तो कभी लिबास लेकिन सवालों के भीतर की पीड़ा और रोमाँच और तनाव का प्रवाह ज़रा भी कम नहीं हुआ . कवि की बेचैनी है . कि कब तक ये सवाल यूँ ही सामने आते रहेंगे . इस सँग्रह की कई कविताएँ कुछ ऐसे ही सवालों का दस्तावेज़ है.

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– केकी एन. दारूवाला

‘अंग्रेजी के शीर्षस्थ कवि केकी एन. दारूवाला की कविताओं के अनुवाद से जुड़कर अनिल पुष्कर ने एक दुष्कर कार्य को सफलतापूर्वक समाप्त किया। वे हिंदी, उर्दू में समान रूप से दक्ष हैं और इसीलिए भारतीय अनुवाद परम्परा के इस अपूर्व मार्ग का एक उल्लेखनीय मानक स्थापित करने में सक्षम रहे।’
– गंगाप्रसाद विमल
‘केकी एन. दारूवाला की ओर मुड़ना गीतात्मक से नाटकीयता की ओर एक संक्रमण है, जो व्यक्तिगत संबंधों के जाल के बीच स्वयं के एकांतवादी चिंतन की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से लेकर बाहरी वास्तविकता के उच्च तरीकों तक, विभिन्न प्रकार के प्रतीत होने वाले अनंत ब्रह्मांड की ओर है। गरमागरम रंग, प्रकाश का बदलाव, और असंख्य पैटर्न और आकृतियों का खेल। फिर भी यह केवल दृश्य प्रभाव वाला एक आयामी चित्रपट नहीं है, बल्कि उथल-पुथल, हिंसा, क्रूरता, दर्द, हँसी, प्रेम आशा, करुणा की एक मानवीय दुनिया है। इस प्रकार ‘ए समर ऑफ टाइगर्स’ का विस्तार भूमि, इतिहास और मिथक के बड़े हिस्से तक फैला हुआ है और पाठक को अलग-अलग सांस्कृतिक संदर्भों के माध्यम से ले जाता है।’
– कृष्णा रायन
सदी के नायाब हस्ताक्षर – खण्ड – 1/2
शिल्पायन प्रकाशन / 2023 / 168/188 पृष्ठ / 395 रु.
संकलन एवं सम्पादन: अनिल पुष्कर / मुन्नी गुप्ता
ऑनलाइन उपलब्ध नहीं

‘सदी के नायाब हस्ताक्षर – खण्ड – 1’ बुनियादी तौर से देश के जाने माने हिंदी के रचनाकारों का ऐसा दस्तावेज है, जिसमें उन्होंने अपने-अपने समय में जिये जीवन समाज सभ्यता और संस्कृति को यहाँ तक कि भारत की अर्थव्यवस्था, परम्परा हुए और आधुनिकता को कैसे देखा इस बात की चर्चा की गई है। इनमें से देश के नामीगिरामी विख्यात विद्वान विचारक रचनाकार, आलोचक, कवि, समाजसेवी, – संस्कृति आचार्य, पत्रकार और भारतीय एवं विदेशी भाषाओं के विद्वान, नाटककार, चित्रकार, प्रोफेसर, गांधीवादी और क्रांतिकारी राजनीतिक विचारधारा आदि के लोग शामिल किये हैं हैं। इसके साथ साथ पुरानी और नई शास्त्रार्थ पद्धतियों और जन आंदोलनों को एक साथ देखने वाली क्लासिक निगाहें ऐसी हस्तियां जिन्होंने हिंदी साहित्य के भीतर पूरी दुनिया के बहुआयामी मुद्दों को बदलावों को बखूबी शामिल किया और अलग अलग देशों में गूंज रही हलचलों को हिंदी जुबान में दर्ज किया है। यह अमरकांत, गंगा प्रसाद विमल, नामवर सिंह, उदय प्रकाश और मैत्रेयी पुष्पा सहित हिंदी साहित्य की कई प्रसिद्ध हस्तियों के साक्षात्कारों का संग्रह है।

‘सदी के नायाब हस्ताक्षर – खण्ड – 2’ के तहत जिन रचनाकारों को शामिल किया गया है वह अपने अपने समय में बड़े विमर्शकार रहे हैं। उनकी विमर्श यात्रा साहित्य, संस्कृति, जनांदोलनों को लेकर रही है। खासतौर से अगर हम बात करें वामपंथी विचारक और प्रो. प्रणय कृष्ण की तो वह एक ऐसे विमर्शकार हैं, जिन्होंने आज़ादी, आंदोलन और आलोचना को लेकर एक ऐसी दृष्टि पैदा की जहाँ विचारधारा प्रमुख थी और ये वामपंथी विचारधारा से जुड़े रहे हैं। यानि इनके नजरिए से आज़ादी, आंदोलन और आलोचना को देखने के लिए वामपंथ की दृष्टि होना जरूरी है। जबकि इनके दूसरी तरफ सुचेता गोइन्दी हैं जो कि गांधीवादी विचारधारा में रमे रहते हुए उसी दिशा में पूरी जिंदगी काम करती रहीं और वे इस बात को मानती हैं कि एक साधारण आदमी तभी अहिंसक हो सकता है जब सत्ता जनसाधारण को हिंसा की आग में झोंक दें। ऐसा होने पर गांधीवादी विचारधारा से जुड़ी हुई जो भी दृष्टियाँ संस्थाएँ कार्यकर्त्ता और दल हों चाहे वह सांस्कृतिक, राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े रहे हों, उन्हें जनांदोलन की तरफ अहिंसात्मक रूप से जाना पड़ा। यह प्रणय कृष्ण, सुचेता गोइंदी, हिमांशु कुमार, बोधिसत्व, वाज़दा ख़ान सहित हिंदी साहित्य की कई प्रसिद्ध हस्तियों के साक्षात्कारों का संग्रह है।

‘राजनीति में, जैसा कि हम कहते हैं, एक निर्माता वह होता है जो इतिहास बनाता है। जवाहरलाल नेहरू ने इतिहास रचा. गांधी ने इतिहास रचा. साहित्य के क्षेत्र में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इतिहास लिखकर इतिहास बदल देते हैं। वे हस्तक्षेप करते हैं. तो आलोचक का एक काम इतिहास में हस्तक्षेप करना है जो हमारे गुरुदेव (हजारीप्रसाद द्विवेदी) ने किया – ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’ लिखकर।’
– नामवर सिंह

‘यहाँ लोग मानते हैं कि नौकरी करती स्त्री आर्थिक रूप से स्वतंत्र है और आत्मनिर्भर हो सकती है. लेकिन जो खेत में काम करने वाली स्त्री है वह शहरी कामकाजी स्त्री से कहीं ज़्यादा स्वतंत्र है. यहाँ तो घर की चौहद्दी पार करते ही स्कूल जाते आते नौकरी का तयशुदा वक़्त सभी कुछ पर तीखी नज़र होती है घरवालों की कि वो वापस कब आयेगी लौटकर? अब वही मज़दूर और किसान स्त्री खेत से कब लौटेगी उसका तो कोई तयशुदा वक़्त नहीं है न?’
– मैत्रेयी पुष्पा

‘अगर आप यह सोचें कि कविता आप लिख देंगे और उससे भूमंडलीकरण में छेद हो जाएगा तो यह बहुत मुश्किल है, कविता से उस तरह के काम की उम्म्मीद नहीं की जानी चहिए जो काम वो नहीं कर सकती. कविता लोगों की चेतना को परिवर्तित कर सकती है. अगर आप कहें कि वो राजनैतिक परिवर्तन ला सकती है, ऐसा तो आज तक न किसी कवि ने माना है और न किसी सार्थक राजनेता ने. हाँ, चेतना में परिवर्तन जरूर ला सकती है.’
– नीलाभ

‘दिमाग से पुराने महापुरुषों का बोझ उतार दें. समाज ही गुरु है. नम्र भाव से चीजों को देखते हुए समझ पैदा होगी और अपनी स्थिति में जिस तरह से सही बात के लिये काम किया जाना सम्भव हो, करें. समान हितों के लोग लड़ने के लिये एक साथ मिलेंगे यह स्वभाविक है. पूंजीवादी ताकतें भी सामान हित के लिये ही मिली हुई दीखती हैं. एक संगठन के रूप में संगठित नही हैं.’
– हिमांशु कुमार

‘मानव जीवन जो है, वह उत्कृष्टता की ऊँचाई पर पहुँच सकता है, वह याज्ञवल्क्य बन सकता है. महर्षि कपिल बन सकता है. शंकराचार्य बन सकता है. और फिर ओसामा बिन लादेन भी बन सकता है. तो ये सभी सम्भावनायें मनुष्य के साथ हैं. इसलिए मनुष्य सर्वोत्तम कृति है. और मनुष्य की सर्वोत्तम कृति क्या है? भाषा. भाषा से बढ़कर कोई संस्कृति नहीं है. कोई सम्पदा नहीं है. कोई शक्ति नहीं है. कोई शोभा नहीं है. कोई अन्तर्दृष्टि नहीं है. इसलिए भाषा के माध्यम से हम इतिहास, भूगोल, खगोल की यात्रा करते हैं.’
– आचार्य निशांत केतु
सुबोध सरकार – चुनिंदा कविताएं

लोकोदय प्रकाशन / 2019 / 120 पृष्ठ / 170 रु.
सम्पादन एवं अनुवाद: मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर
अमेज़न
ये कविताएँ प्रसिद्ध बांग्ला कवि सुबोध सरकार के आंतरिक जीवन से जूझते हुए और बाहरी हलचलों, घटनाओं, वाक्यों, रोजमर्रा की चालों और आंतरिक झगड़ों की दुनिया से लड़ते हुए निकली हैं, एक ऐसी दुनिया जिसकी न कोई निश्चित इच्छा है, न कोई सीमाएँ। न वीज़ा, न पासपोर्ट और बेहतरीन, ख़ूबसूरत, सबसे दिलचस्प आकस्मिक घटनाएँ, दुःख, मातम, घटनाएँ इन कविताओं में देखने को मिलती हैं। आप पाएंगे कि क्या बंगाल की सड़कें हैं, क्या मोहल्ले हैं, क्या इलाके हैं, क्या बंगाल की संकरी गलियां हैं, क्या नुक्कड़ हैं, क्या चौक-चौराहे हैं। ऐसा नहीं लगता कि हम कविता की दुनिया में कहीं भटक गये हैं।

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– सुबोध सरकार
सिलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरू – खण्ड – 56/57

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस / 2014 / 485 पृष्ठ / 1095 रु.
सम्पादन: माधवन के. पलात
अमेज़न
सिलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरू – खण्ड – 56/57 अपेक्षाकृत संक्षिप्त अवधि, केवल जनवरी 1960 के पहले पच्चीस दिनों से संबंधित है । ऐसा दो बड़े विषयों के शामिल होने के कारण है, बैंगलोर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सत्र और आर.के. करंजिया को नेहरू के साक्षात्कार। जबकि योजना और विकास ने बेंगलुरु में अपना गौरवपूर्ण स्थान बरकरार रखा है सत्र, विदेशी मामले और चीन के साथ सीमा प्रश्न प्रमुख रहे। पर उदाहरण के लिए, जनवरी 1959 में नागपुर अधिवेशन में एक प्रस्ताव और था अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर एक भाषण; दूसरी ओर, बैंगलोर में हैं इस विषय पर दो संकल्प और तीन भाषण। जहाँ तक साक्षात्कारों की बात है करंजिया के लिए, वे जनवरी 1960 में शुरू हुए और उसके बाद रुक-रुक कर चलते रहे। अन्य कई परिणामस्वरूप, विषयों को इस और बाद के खंड के बीच विभाजित कर दिया गया है जो फरवरी के अंत तक चलता है। जैसा कि एक एकल खंड होता एक पाठक के आराम से संभालने के लिए यह बहुत बड़ा है, इस विभाजन को प्राथमिकता दी गई, हालाँकि इसने कुछ विषयों को दो खंडों के बीच विभाजित किया। नेहरू के हिंदी में भाषण या पाठ हिंदी में प्रकाशित हुए हैं उन लोगों के लिए जिन्हे अनुवाद की आवश्यकता है, अंग्रेजी में अनुवाद जोड़ा गया है।

‘उन लोगों को धन्यवाद देना मेरे लिए खुशी की बात है जिन्होंने इस खंड को प्रकाशन के लिए तैयार करने का भारी बोझ उठाया। हिन्दी पाठ अनिल पुष्कर द्वारा तैयार किये गये हैं।’
– माधवन के. पलात
अर्गला पत्रिका
सम्पादन: अनिल पुष्कर
मुख्य साहित्यिक सलाहकार: गंगा प्रसाद विमल







‘अर्गला अपने विविध स्तंभों में इस बात को ज़्यादा बढ़ायेगी कि हमें ज्ञान की रोशनी को अनन्त अँधेरे का मुक़ाबला करने के लिए जलाए रखना है. और यह तभी मुमकिन है जब हम इस बात पर यक़ीन पुख़्ता करें कि नकारात्मक सोच से विकास और बढ़ोत्तरी पर असर पड़ता है. जीव सृष्टि का नियम बढ़ना है रुकना नहीं. यह कुछ ऐसे सत्य हैं जिन्हें शब्दों में दुहराने से उनकी ताक़त कमतर होती जाती है इन्हें व्यवहार में ढालने की दृष्टि को ही सराहना होगा.’
– गंगाप्रसाद विमल