मुझे याद है जब मैं सन 2000 में JNU में आया वो भी क्या दिन थे तब भले ही छात्र राजनीति में पार्टियां होती थीं जैसे AISA, SFI, AISF, ABVP, DYFE, PSU, DSU आदि आदि मगर वैचारिक मतभेद के बावजूद भी खासतौर से ABVP और वाम छात्र कार्यकत्ताओं के बीच कभी भी कोई दूरी नहीं रही, कोई अलगाव नहीं रहा, कोई आपसी रंजिश नहीं रही। मुझे याद है फ्री थिंकर्स के तौर पर काम करते हुए जितना सहयोग मुझे वाम संगठनों से मिला और जितना सहयोग मैंने वाम संगठनों का किया, उतना ही सहयोग मुझे ABVP का भी मिला और उतना ही सहयोग पूर्ण रवैया मेरा भी ABVP के लिए रहा। ऐसे में मेरे सहयोग, साझीदार, सीनियर Vivekanand Upadhyay , Dr. Shiv Shakti Bakshi शिरीष चन्द्रा और मेरे सबसे करीबी मित्र शिव शक्तिनाथ बख्शी आदि आदि रहे।
इनलोगों के संपर्क में रहने के कारण वाम संगठनों की आलोचना का शिकार भी कई दफा होना पड़ा जबकि ये सभी मेरे मित्र थे और वैचारिक रूप से एक दूसरे से सहमत और असहमत दोनों प्रतिक्रियायें लगातार चलती रहती थीं, जिसका नतीजा था कि सबसे लंबी भूख हड़ताल पर जब शिव शक्तिनाथ बख्शी तकरीबन21 दिन जहाँ तक मेरी याददाश्त है बैठे तब उनका सहयोग करने के लिए तमाम छात्रों के साथ मैंने भी उनका पूरा समर्थन किया मुद्दा था छात्र हितों को लेकर के। जिसमें वाम संगठन उस वक्त थोड़ा निष्क्रिय नजर आ रहे थे।
हालांकि JNU में यह आम बात थी जब 2000 से सन 2010 तक हम सभी मित्र एक दूसरे के भारी विरोधी और भारी असहमति के बावजूद भी मित्रता में कोई कमी नही आने दी। यही वजह है कि आज भी जब भी शिव शक्तिनाथ जी Sके मुलाकात होती है तो सीने से लगकर ही होती है। और आज अपने प्रिय मित्र को इस ऊंचाई पर पहुँचते हुए देखकर हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। इसके लिए उनकी संगठन के लिए कड़ी मेहनत और ईमानदारी कामयाबी का सिला बनी। एक बार फिर से ढेरों बधाइयाँ और शुभकामनाएं।
