स्त्रीकाल का ताजा अंक प्रेस में है। एक सप्ताह में उपलब्ध होगा हमारे लिए। इस बीच ‘नॉटनल’ पर पढ़ा जा सकता है। इस अंक का थीम है ‘सिनेमा का स्त्रीवादी पक्ष’। अंक संपादक हैं विभावरी।
विभावरी स्त्रीकाल की उन चुनींदा अंक संपादकों में हैं, जिन्होंने अपनी पूरी जिम्मेवारी से इसे संपादित किया-लगन, निष्ठा, समर्पण और वस्तुनिष्ठता के साथ. हमारा हस्तक्षेप न्यूनतम है या एक-दो लेख पर संपादक का कंसेंट लेने के लिए थोड़ा सा रिलक्टेंट परश्यू करने भर तक।
इस अंक की संपादक विभावरी का निर्णय ही प्राथमिक और अंतिम रहा। उन्होंने ही सारे लेख लिखवाये हैं, परश्यूड कंसेंट वाले एक -दो को छोड़कर। फिर भी मेरी एक शिकायत अंक संपादक से जरूर है, उन्होंने मुझसे कोई आलेख नहीं मांगा। इस योग्य नहीं समझा। फिल्मों की कुछ समीक्षाएं मैंने भी लिखी हैं-मैं ही अंक संपादक की वस्तुनिष्ठता का शिकार हो गया।
इस अंक में प्रकाशित फ़िल्म सिद्धांतों के अनुवाद इसकी खास उपलब्धि हैं इसके अन्य महत्वपूर्ण आलेखों के अलावा। अनुवादक हैं डा. अनुपमा, Binay Thakur (बिनय ठाकुर)
अंक के अन्य लेखक और कंट्रीब्यूटर हैं:
अजय ब्रह्मात्मज, प्रियदर्शन ( Priya Darshan ), विनोद दास, सौम्या बैजल, सुदीप्ति, जवरीमल्ल पारख ( Jawari Mal Parakh ) , डाॅ. चंदन श्रीवास्तव ( Chandan Shrivastawa ) , विभावरी, विशाल पांडेय, प्रतिभा कटियार, अंजू लता, मंजरी सुमन, वर्तिका, संजय जोशी, डाॅ. सागर ( DrSagar Jnu ) , रिया राज, पूरन जोशी, अनिल पुष्कर ( Anil Pushker ) , मुन्नी गुप्ता ( Munni Gupta ), बंदना भारती, शिप्रा किरण, देवयानी भारद्वाज, पशुपति शर्मा, हर्षिता, फ़िरोज़ खान, सुरभि बिप्लव ( Surabhi Biplove )
आवरण चित्र अनुप्रिया का है।
By Sanjeev Chauhan
