आदिम आवाज़ें और सात सुरों की बारिश

प्रलेक प्रकाशन / 2020 / 120 पृष्ठ / 150 रु.
खरीदें: अमेज़न (180 रु.) / फ्लिपकार्ट (180 रु.) / बार्न्स एंड नोबल ($13.99)

आवरण: रवीन्द्र कु. दास

‘आदिम आवाजें और सात सुरों की बारिश’ का यह जो तानाबाना है, आप देखेंगे आखिरी दौर में कवि जब लौट रहा है अपने पुराने उसूलों, दर्शनों और ख़्यालों के आशियाने में तब वनमानुष से मानुष का मूल कहाँ हैं, उन्हें पहचान लेता है। इस तरह यह ‘आदिम आवाज़ें और सात सुरों की बारिश’ अपने मकाम हासिल करने निकल पड़ी है आप देखेंगे कि जब यहाँ पहुँचकर अनचाहा अनदेखा और अनकहा कारवाँ बनता गया तब कविताएँ और कवि आदम और आदम के भीतर के जंगलों की जो पूरी पैमाइश और आजमाइश है वह हमारे सामने आ के खड़ी हो गयी है। हम चाहे तो यहाँ नई-नई तफ़्तीशें, तहरीरें, दुराग्रहों से भर सकते हैं और हम चाहें तो इन कविताओं के साथ जुड़ करके एक नई संस्कृति पैदा कर सकते हैं। यही कुल मिलाकर इस संग्रह की अपनी दुनिया और तहजीब है और चंद अल्फ़ाज़ों के साथ सबके सामने हाजिर है ‘आदिम आवाजें और सात की बारिश’।

‘इस कविता संग्रह में मेरे प्रिय कवि अनिल पुष्कर ने अपनी बात को बड़े ही अनोखे अंदाज़ में कहने की कोशिश की है। समाज में व्याप्त जो विसंगतियां और विदूपताएं हैं उनको नज़र में रखते हुए इन्होंने प्रतीकों के सहारे मन के भावों को पाठक तक पहुँचाने में बेहतरीन कामयाबी हासिल की है। इन्होंने बड़े ही चुनौतीपूर्ण तरीके से समाज की अंदरूनी चालाकियों को जंगल और पशुओं के बहाने से अपनी कविताओं को उस मुकाम तक पहुँचाया है जहां से पाठक को लगने लगता है कि वह किसी कुचक्र का शिकार हो गया है। इस बेहतरीन प्रतीकात्मक काव्य यात्रा के लिए मैं अपने प्रिय कवि को इस उम्मीद के साथ बधाइयाँ देता हूँ कि आप आने वाले वक्त में भी इस रचनात्मक धार को यूं ही बरकरार रखेंगे।’
डॉ. सागर