महेंद्र राजा जैन एक ऐसी विराट अद्भुत अपूर्व शक्ति साहित्यिक क्षेत्र में जब तक रहे, तब तक साहित्य के तमाम आडम्बरों से लड़ते झगड़ते विरोध करते रहे और जो दुनियावी कागज में जिंदगी के सर्जक रहे। उन्हें हमेशा सम्मान देते हुए एक लेखक के बतौर प्रकाशकों के साथ लेखकीय कमाई का मोटा हिस्सा जो खाते उड़ाते रहे । लेखकों की गाढ़ी कमाई हड़पने वाले प्रकाशक जिन्होंने यही अपराध करते करते अपने परिवार पाले, पीढियाँ बड़ी की । उन रीतियों और लेखक के साथ अन्यायपूर्ण तरीकों से पेश आनेवाली नीतियों से मुखालफत करते हुए जैन साहब लेखक के हक में खड़े रहे।
यहाँ तक कि अदालत में बतौर लेखक रॉयल्टी के लिए भी तटस्थ खड़े दिखाई दिए। बेबाक निर्भीक और बौद्धिकता के धनी जैसा नाम वैसा ही गुण और वैसा ही व्यक्तित्व । न्यायपूर्ण सरल सहज और अपनी खुश्क और भारी आवाज के साथ ठसक और धमक के अदब को बनाये रखते हुए हमेशा जरूरतमन्दों के लिए वे बिना किसी ज्ञापन अधिसूचना और चर्चा के संजीदगी और खामोशी से न जाने कितनों के मददगार रहे। वे साहित्यिक दरबार के जी हुजूरी की संस्कृति के हमेशा खिलाफ रहे।
महेंद्र राजा जैन के द्वार साहित्यिक अभिरुचि रखने वाले युवाओं के लिए दिनोरात खुले रहते थे। उनके बहस मुबाहिसों के हिस्से ज्यादातर एक खास अनुक्रम में संचालित होते थे। मसलन अब तक साहित्य में सहित्यकोश, शब्दकोश, परिभाषा कोश, आदि आदि तमाम तरह के कोश का निर्माण होता रहा है किंतु ऐसा पहली दफा हुआ कि प्रयाग की भूमि से इंग्लैंड में अपनी साहित्यिक कृतियों का यानी हिंदी की साहित्यिक कृतियों का संगठन कुछ इस तरह से उन्होंने किया कि एक नया पैमाना ही खड़ा किया जिसे नाम दिया ‘विचार कोश’। इस कड़ी में नामवर विचार कोश, जैनेन्द्र विचार , अज्ञेय विचार कोश आदि ।
अभी हाल ही कि बात है कि अज्ञेय विचारकोश पूरा होने के संग संग नई किताब प्रकाशन से विनम्रतापूर्वक एक ओर लगातार बात की कि वे यह विचार कोश मुझ तक पहुंचाने का जिम्मा लें। बकायदा महेंद्र राजा जैन इसलिए हम जैसे युवा से बात करते रहे कि उनकी नजर में अज्ञेय के जीवन दर्शन और लेखन व्याख्यान से समृद्ध एक बड़े साहित्यिक कृतियों के सर्जक यानी कि उनकी कृतियाँ हिंदी जगत में बौद्धिकता और संवेदना दोनों जगत के स्तर पर जिसतरह से एक बड़े महासमुंद का रूप लेती है, उसके भीतर से अज्ञेय की बहुमूल्य निधियां बहुमूल्य रत्न जो समुद्र की अतल गहराइयों में कृतियों के भीतर विचार की तरह समाए हुए थे उन अमूल्य निधियों को यानी उन विचारों को संजोने वाले जीवन दर्शन सृजन और स्पंदन को सीपियों के भीतर से मोती की तरह निकालना यह बहुत ही श्रमसाध्य और जोखिम भरा काम था जिसे अपने अंतिम पड़ाव तक बिना थके बिना रुके ऊर्जावान बने रहते हुए उन्होंने अज्ञेय विचारकोश अपनी पत्नी उर्मिला जैन के सहयोग से पूरा किया और मुझे जिस श्रध्दा भाव प्रेम तथा मूल्यांकन की कसौटी पर कसकर रचना कोश को यानी विचारकोश को देखने की आस जो मुझसे जुड़ी हुई थी जिसके कारण उन्होंने मुझे सबसे पहले सॉफ्ट कॉपी ईमेल से भेजी और फिर प्रकाशक से कहकर तकरीबन तीन हजार के तीन खंड मुझ तक पहुँचवाये।
उन्हें पूरी उम्मीद थी कि उनके जिंदा रहते रहते तीन खंडों के उनके विचार कोश को देखकर मैं अपनी नजर से इन खंडों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कर सकूँ। मगर आज बहुत ही दुःखद मन को पीड़ा देनेवाली अवस्था तक ले जानेवाली जो खबर मिली, कि महेंद्र राजा जैन ने दुनिया को अलविदा कह दिया । ये सुनते ही उनके साथ की तमाम स्मृतियाँ एक ओर ताजा हो गयी तो दूसरी तरफ आँखे भीग गयी कि एक बड़ी जिम्मेदारी जो सौंपी गई थी वो पूरी हो भी गयी तो महेंद्र राजा जैन की जो प्रतिक्रिया इसपर मिलती वो अब न मिल सकेगी।
कुदरत कायनात उनकी आत्मा को शांति दें और उनकी साथी हमसफ़र और हमारी वरिष्ठ तथा साहित्य के लिए दुनिया की तमाम जगहों हिस्सों के अनुवाद तथा यात्राओं के जरिये दुनिया की नई खिड़कियां खोलने वाली उर्मिला जैन को उन्हें दुःख से उबरने की ताकत और दुःख सहने की हिम्मत दे।
हम सम्पूर्ण साहित्यिक बिरादरी की ओर से जो लगातार महेंद्र राजा जैन के संपर्क में रहे। उनकी रूह को सलाम करते हैं।
और भी न जाने कितना कुछ उनके साथ जो अब बचा रह गया यादों में खाली हमारे भीतर अब भी वैसे का वैसा बचा है और इन्हीं स्मृतियों के कारण महेंद्र राजा जैन हम सभी के लिए रूह से रूह तक जिंदा बने रहेंगे। वे ऐसी शख्सियत रहे जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। अलविदा मेरे वरिष्ठ साहित्यकार जिनका आशीर्वाद मुझे हमेशा मिलता रहा।
साहित्यिक बिरादरी में एक बार पुनः अपूरणीय क्षति।।