लड़ो कि लड़ना है जरूरी
वे पशु हैं जुगाली से भरे हैं
उनके सींगे हैं निकली नुकीली
मगर दिमाग से खच्चर हैं।
इन खच्चरों को बोझ नहीं उठाना
ये अब राजपाठ चाहते हैं
इसीलिए सत्ता के गलियारों में पगुरिआते पाए जाते हैं
हुकूमत को मरकहे पशु पगुराते मुहँ चाहिए
जो उनके इशारों पर सींगे मारने को राजी हों
और जब अपनी मर्जी से मारें तो सत्ता उन्हें सराहे
हुकूमत के तले काम करने वाले गधे खच्चर और क्या चाहे।
दो वक्त का सालन और हरियाली छरहराई घास का पालन
जो बाघ हैं वे अकेले ही दहाड़ कर करेंगे किनारे इन गधों को
जो लोमड़ी है वो ऐसे गधों को शिकार के लिए तैयार कर ले जाती है है सत्ता तक
सत्ता के पास जुगलबन्दी है जुगाली है चुगलखोरी है कत्ल की तैयारी की हर हार जीत की बहाली है।
अब गधों खच्चरों लोमड़ियों गीदड़ों और बाघ की लड़ाई है।
सत्ता देखें कब किसकी तरफ खड़ी किस किस की जान बचाएगी।
।। जंगल की पाठशाला में बाघ और भितरघातियों का मचान घमासान ।।
अनिल पुष्कर ।।