रुद्रादित्य प्रकाशन से आने वाला : कविता संग्रह की प्रतीक्षा
हमने विरोध की तख्तियाँ लटकाए हुए ही मान लिया कि तख्त पलटकर रख देंगे. सो हमने जुबानी खंजर के अलावा कोई मुनासिब पहल अब तलक न की. सोचते रहे ख्यालों में कि तख्त औ ताज मिटा देंगे, जो लगे हैं दाग दामन पर हटा देंगे, मगर ख़्वाब टूटे तो मालूमहुआ ज़िंदा सारे दस्तूर मिटाए जा चुके हैं. इंसान जमीं से हटाते हटाते हटाए जा रहे हैं और हम मोहलत मांगते रहे, हम गफलत ही खालिस पालते रहे.
“सुन रहा है कोई” कविता संग्रह की भूमिका से एक अंश ।।
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पहला कविता संग्रह “राजधानी” 2019 के बाद “आदिम आवाजें और सात सुरों की बारिश, तानाशाहों के वारिस, कविता का गणित और राजनीति के बाद अब आपके सामने पाँचवा कविता संग्रह ” सुन रहा है कोई” रुद्रादित्य प्रकाशन प्रयागराज से जल्द आपलोगों तक आने वाला है।
यकीन है जो प्यार अब तक मिला इस संग्रह की कविताओं को भी उतना तो कम से कम मिलेगा।
“सुन रहा है कोई” संग्रह की कविताओं से आप किसी भी एक दूसरे के लिए कोई असर भी देख सकते हैं।।
ये वक्त के पैबन्दों में पक्के वुसूलों के हैं, निरंकुश फैसलों को ईश्वर की रजामंदी कहकर हलाल करने में कोई रहम नहीं बरती जा रही जनतंत्र की ताकतें बदहवास सी बिखरी पड़ी हैं. हालात ये हैं कि इनकी इबादतगाहों में मुल्ला-मौलवी, पॉप-पुजारी की रहमोकरम पर परमात्मा तक कैदखाने की सजा भुगतने को मजबूर है. हर काफिर और मरदूद, हर इंकलाबी, हर जिहादी और अल्लाह की सच्ची बन्दगी करने वाला मसनवी सब बेमानी हैं सब दगाबाज़ और शैतानी हैं – केवल ईश्वर को अपनी अपनी गुम्बदों मीनारों इमारतों और स्थापत्य की सबसे ऊँची कलाकारी के भीतर गुलाम बनाने वाले दूतों को ही पैगम्बरों का वारिस मानने की जो तरकीबें गुनी बुनी जा रही हैं, वे किसी भी जमीं किसी भी वतनपरस्त के लिए खतरा हैं. धार्मिक लोग जब भी धर्मशास्त्र उठाते हैं यारी में फांक फांक दरारें होती जाती हैं. न कोई मुल्क न कोई सरहद न कोई भूगोल इस हमले से बचने की कोई कीमिया ढूँढ़ पाया. वे अपनी अपनी तहज़ीबी लिबास में खुद को अपने हमराज़ अल्लाह, ईश्वर, पैगम्बर और परमात्मा को इतिहास में सबसे पुराना और आदि सभ्यताओं का मसीहा मानते चले आ रहे हैं और मानते आये हैं कि ब्रह्माण्ड की इबारत ही हाकिम हिकमत ने लिखी..
सुन रहा है कोई – कविता संग्रह की भूमिका से अंश…