उसे जाने कहाँ से शायरी में ख़ूब दिलचस्पी थी. किसी शायर की दो पंक्तियाँ जो मुझे भेंट में उसके लबों से मिली थीं आज भी ज़बानी याद हैं –
“एक तर्ज़े-तग़ाफ़ुल है सो वह उनको मुबारक
एक अर्जे तमन्ना है जो हम करते रहेंगे.”
किशोर-प्रेम में दिशा के प्रतिकूल होने का कोई उपाय नहीं. खुले आकाश में उमंगों की डोर में बँधे हम परिंदों की तरह प्रकृति के साथ खुले आकाश तले संतुलन बनाए उन्मत्त उड़ते रहे. सागर की लहरों के ऊपर तिरते-उतराते उसके साथ प्रेम में जीते हुए, अपने-अपने बसेरे से दूर होकर भी कोई गिला नहीं कोई विरोध नहीं रहा. वहाँ उल्लंघन नहीं सिवा प्रेम के पागलपन, अराजकता और आवारगी में डैने फ़ैलाए इधर-उधर तेज़-धीमी बयार की फुहारों संग मँडराने का मज़ा ही कुछ और था. नीले जल की बहकी बूँदों में नन्हें डैनों से बूँदों की धारा में बहते रहना किसी रोमांच से कम न था. सहज धारणाओं में उलझा हृदय-स्वभाव इतना सुखद अनुभव करता रहा कि सुख की वह प्रतीति ही उस प्रेम का स्वभाव बन गई.
अर्गला नॉवेल का एक अंश ।।