शीर्षक पढ़ते ही पहला सवाल मन में आया कि क्या वाकई में हिंदुस्तान/भारत/इंडिया उत्तर आधुनिक हुआ? अगर मान भी लें हुआ तो क्या आधुनिकता का उत्तर खोज लिया गया। अगर हां तो क्या जो घट रहा है वही सच मायने में उत्तर आधुनिकता है? नहीं है यदि तो कैसे इतिहास अपने इस दौर में उत्तर आधुनिक संकट से गुजर रहा है?
दूसरी बात ये कि क्या संपूर्ण संसार में जहां भी उत्तर आधुनिकता आई तब क्या वह मुल्क भी इतिहास में अफवाह के दौर से गुजरे? नहीं गुजरे तो भारत ही क्यों? इसका मतलब इतिहास में अफवाह उत्तर आधुनिकता की देन नहीं है।
क्या और मुल्क इसी दौर में मंदिर मस्जिद चर्च और गिरिजाघर की लड़ाइयों में व्यस्त रहे? अगर नहीं रहे तो उत्तर आधुनिक समय में इन मुल्कों ने जो किया ठीक वही या वैसा ही काम उत्तर आधुनिक समय में क्यों नहीं हुआ?
इस समय कौन सा मुल्क है जो इतिहास में अफवाह के दौर से गुजर रहा है? और अफवाह तो उन जगहों में ज्यादा फैलती है जहां पढ़ाई लिखाई तकनीकी ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल समाजशास्त्र आदि विषयों से मनुष्य का कोई बहुत ज्यादा दखल नहीं रहा। जिन मुल्कों ने उत्तर खोज लिया आधुनिक हुए वो युद्ध में गए क्या? जहां धर्मांधता फैलाई गई वही मुल्क गृहयुद्ध में धंसे रहे और अपने ही आसपास के इलाकों मुल्कों से युद्ध में डटे रहे।
मगर क्या उत्तर आधुनिक समय में यह सवाल नहीं उठे कि वो कौन से मुल्क हैं जो उत्तर आधुनिक भी हुए। और धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए कमजोर देशों को हथियार और युद्ध की ताकत देकर उनसे मुनाफा कमाते आए हैं।
तो क्या अगर भारत उत्तर आधुनिक हुआ भी है और धार्मिक उन्माद में घिरता जा रहा है तब यह क्या वाकई उत्तर आधुनिक समय का संकट है।
किताब बिना पढ़े भी शीर्षक से ये सारे सवाल उठना वाजिब हैं। मालूम नहीं इनका उत्तर यहां है भी कि नहीं। और ये सवाल इस किताब में होंगे कि नहीं पता नहीं। कहीं ऐसा न हो कि यह किताब भी इतिहास में अफवाह बनकर ही न रह जाए।
इतिहास में अफवाह यूं तो हर दौर में रही है। इसमें उत्तर आधुनिक संकट से गुजरने जैसी कोई वजह मालूम नहीं देती।
फिलहाल किताब मिले तब देखें सच है क्या और भला झूठ है क्या?