माँ आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है
तुम्हारी बात ही कुछ और
तुम्हारी जादुई छुअन
तुम्हारी खुली हुई चेतना की परछाइयाँ
ये लो तीन फल
अब उनकी शाखों में फूल आए हैं
अब उनकी शाखों में फल आए हैं
एक नन्ही कली
एक मासूम सा पुष्प
अभी तुम्हारे आँगन में पिता ने जगह वैसी ही बना रखी है
अभी दर और दिमागों पे सीलन और गर्दिश छाई है
पापा जो अब इस दिन हर बरस खामोश रहते हैं
आज भी चुप्पी नहीं तोड़ी
हम दोनों के बीच एक गजब का अकेलापन है
न वे कुछ बोले
न माँ मैं कुछ बोला।
हाँ एक दुनिया जहां तुम्हारे दो चिराग और
उनके अपने दो सितारे आसमाँ में टिमटिमाते हैं
आज का आलोक तमाम आलोचनाओं से भरा है
दर्ज हैं दिल अब भी कई अनसुलझी गुत्थियां
दफन हैं शिनाख्त
दबे हैं तुम्हारे अचानक छोड़ कर जाने के ज़ख्म
कोई कुरेद रहा है
कोई तेज छुरा घोंप रहा है
तुम उस दिन भी कितनी आश्वस्त थी कि
वापस घर लौटने की उम्मीद बाकी है
उस दिन तेज बारिश तुम्हें रोकती रही
तुम्हें खड़कते बादलों ने भी चेताया
तुम्हें घर पे बने रहने के लिए हवाओ ने तूफानी रुख किया था
मगर काल का विकराल रौद्र तांडव रुकने को राजी बिल्कुल नहीं था
तुम उसके वश में
तुम उसकी रहस्यमय घेरे में ऐसे गयी कि चीरकर छाती काल की तुम बस अभी लौट आई
मगर यकीन मानो तुम लौटी ये सच है
किन्तु काल ने तुम्हें धोखे में रखकर
तुम्हारी आत्मा तुम्हारे प्राण हर ले गया
केवल देह वापस लौटी
बिल्कुल उसी तरह जैसी तुम मेरे संग घर से निकली थी
कोई भरोसा करे न करे मुझे यकीन था माँ काल को मारकर लौटेगी अभी
अभी आंखें मूँदे मुझे डरा रहीं है
मुझसे लुकाछिपी का खेल कर रहीं है
मुझे देख रहीं है ऐसे जैसे तुम्हारे न रहने पर मेरे पास क्या बचेगा कौन रहेगा किसके भरोसे जी सकूँगा
मुझे लगा रात ज्यादा हो रहीं है
तुम आंखें मूँदे इसी सोच में डूबी झटके में गहरी नींद में चली गई हो
भोर होते ही उठ मुझे चौंका चौंका दोगी
मुझे कहोगी उठ देर तक मेरे फ़ेर में सोया नहीं पगला
कितनी बार कहा मुझे तुझसे कोई अलग नहीं कर सकता
मेरे ही प्राण तोअनिल पुष्कर तुझमें बह रहे हैं
फिर किसकी मजाल तुझे मुझसे दूर कर सके
मैं इसी विश्वास में सुबह तक जागा
पर दिवा स्वप्न सा सब मायावी सब चहल-पहल
सब कुछ मेरे सामने अब भी ठीक वैसे ही रुका पड़ा है
समय वहीं ठहरा हुआ है
तुम उसी तख्ता पर चैन से लेटी हुई
लगा अभी कह दोगी – सुन आज थकी हुई हूँ
एक आधा कप चाय बना ले
तू कुछ खा लेना किचन से लेकर
तुम्हारी पसन्दीदा नमकीन रखी है
मेरे लिए एक बिस्किट ले आना
मैं अब भी उसी जगह खड़ा हूँ
इस आस्था इस आस में कि तुम अभी सोई हो जागने के संग मेरी शक़्ल देखोगी तो मुस्कान देकर आंचल में ले कहोगी -बदमाशियां कब जायेंगी तेरी
अब भी शरारतें करते शर्म किया कर
जब तेरी दुल्हन आएगी तब देखू गी तेरी हरकतें
तब माँ प्यारी होगी कि बीबी
तब देखूँ गी मेरी चिंता कितनी रहेगी
तू जल्दी से ब्याह कर ले
ले आ बहु
मगर तब मैंने कहा तुम सी मिले तो सही
यार तुम अपने जैसी ढूँढ लाओ
माँ के जैसी नहीं मिलती कोई
हाँ वो तुम्हें तुम्हारी औलाद की माँ की तरह मिलेगी
अब बोल करेगा ब्याह ।
छोड़ माँ ये बहस
हासिल सिफर ही आएगा
माँ जब मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ
तुम मुझसे इतना प्यार करती हो
जितना कोई किसी से कर नहीं सकता
तो ये बहस बेकार ही है
आओ देखो तुम इतने बर्षों तक मुझसे दूर रही
केवल इसी कारण कि मैं एक स्त्री के साथ रहूँ
जिस पे तुम स्नेह ममता प्यार और आशीष लुटा सको
कहाँ हो यार
माँ आओ देखो बिल्कुल तुम्हारे जैसी बहु
वो भी तुम्हें रह रह बुलाती है
कहती है माँ सामने होती तो कितना मजा आता
मुझे बोलती ले सम्भाल इसे
तुझे तंग करे तो कान खींच लेना
मैं ये हक तुझे देती हूँ
मेरी औलाद बदमाश है
ध्यान रखना अपना और इसका
ये नाजुक मिजाज है
जरा सी हरारत में भी आसमाँ सर पर उठा लेता है
सम्भाल तो लेगी ना
गुस्सा नाक पे धरा रहता है
तू घबराना मत इसको डांट कर रखना जैसे मैं रखती आई हूँ
मेरी जगह अब तू ही है
मुझे अब आराम करने दे
बहुत बकबक कर ली
पिता थोड़े नकचढ़े और जिद्दी हैं
देखे रहना । कोई हारी बीमारी हो तो देख लेना
और दो भाई हैं जो इसे चाहते हैं पर उन दोनों की अपनी दुनिया अपनी जोड़ी है
ये उन दोनों से थोड़ा अलग है
चल आज बस इतना ही ।
अब तभी आऊंगी जब तू मुझे बुलाएगी
वरना ये बदमाश मुझे ऐसे ही तंग करता रहेगा।
मेरा आशिर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है।
– अनिल पुष्कर

माँ आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है
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